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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

आपको अपराधी सिद्ध करा बैठें। हमपर जितनी नजर दक्षिण आफ्रिका में रखी जा रही है उतनी शायद और कहीं नहीं । यदि हम अपना बरताव ऐसा रखेंगे कि हमारे विरुद्ध किसीको कुछ कहनेका मौका न मिले तो इस तीखी नजरका परिणाम अच्छा भी हो सकता है ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १३-१-१९१२

१७५. भेंट : ' इवनिंग क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिको

[ जोहानिसबर्ग जनवरी,
१५, १९१२]

व्यापारिक परवानों, चेचकका प्रकोप आदि प्रश्नोंके सम्बन्ध में 'इवनिंग क्रॉनिकल' के एक प्रतिनिधिने श्री गांधीसे मुलाकात की ।

नगरपालिका अध्यादेशके[१]सम्बन्ध में विशेष आपत्तियोंके बारेमें पूछे जानेपर श्री गांधीने जवाब दिया :

जिन बातोंको लेकर हमें इस अध्यादेशके मसविदेके प्रति आपत्तियाँ हैं, उनमें कुछ ये हैं : कुछ विशेष प्रकारके परवानोंपर नगरपालिकाओंको सत्ता दे दी गई है और उनके निर्णयके विरुद्ध अपीलका अधिकार भी नहीं दिया गया है;[२]नगरपालिका मताधिकारके सम्बन्धमें पुरानी निर्योग्यता फिरसे लागू कर दी गई है;[३] नानबाईकी दूकानोंमें नौकरी करनेवाले भारतीयों तथा अन्य एशियाइयोंके लिए योग्यता निर्धारित कर दी गई है।[४]

इनमें से पहली और तीसरी बातें बिलकुल नई हैं; दूसरी शिकायत पुरानी है;[५] फिर भी मैं समझता हूँ, जब कभी कानूनी रूपमें इसे दुहराया जायेगा या इसपर फिरसे आग्रह किया जायेगा, ब्रिटिश भारतीय निश्चय ही इसके विरुद्ध आवाज उठायेंगे । स्वभावतः भारतीय आशा करते हैं कि किसी-न-किसी दिन यह पूर्वग्रह, जिसका कोई औचित्य नहीं है, समाप्त होगा । और चूँकि ऐसे पूर्वग्रहोंकी समाप्ति ही उनका लक्ष्य

 
  1. एशियाइयोंको प्रभावित करनेवाले खण्डोंके लिए देखिए परिशिष्ट ७ (क) ।
  2. तात्पर्य अध्यादेशके खण्ड ९१ से है, जो नगर परिषदोंको व्यापार तथा फेरी-सम्बन्धी परवाने देनेसे इनकार करनेकी सत्ता देता था, और सम्बन्धित लोगों को उनके निर्णयोंके विरुद्ध अपीलका अधिकार भी नहीं देता था ।
  3. देखिए अध्यादेशका खण्ड ११४ ।
  4. देखिए अध्यादेशका खण्ड ९२; और " साम्राज्य सरकार से क्या अपेक्षा करें ? ", पृष्ठ १९८ ।
  5. ट्रान्सवालमें भारतीयोंको नगरपालिका मताधिकार से वंचित करनेका प्रयत्न सन् १९०३ में ही प्रारम्भ हो गया था, और फिर सन् १९०४ में भी । देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३९७-९८ तथा खण्ड ४, पृष्ठ २०५-०६ ।