पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/२४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०७
भेंट : ' इवनिंग क्रॉनिकल' के प्रतिनिधिको

है, इसलिए उन्हें ऐसा लगता है कि वे भेदभावपूर्ण कानूनोंको स्थायित्व प्रदान करनेके किसी भी प्रयत्नको निर्विरोध नहीं जाने दे सकते ।

[ प्रश्नकर्ता ] और श्री गांधी, एशियाई बाजारोंकी व्यवस्थाके [१]बारेमें आपका क्या खयाल है ? क्या ये उन बातों में से नहीं हैं जिनपर आपके लोगोंको आपत्ति है ?

[ गांधीजी ] अवश्य हैं ! बल्कि इनके खिलाफ तो एक विरोधपत्र भी भेजा जा चुका है। यह सच है कि बाजारोंसे सम्बन्धित खण्ड मात्र क्षमतादायी (एनैब्लिंग) खण्ड हैं, और ब्रिटिश भारतीयोंको इन बाजारोंमें रहनेपर बाध्य नहीं किया जा सकता; परन्तु इसमें जो भावना निहित है, वह स्पष्ट है। मंशा यह है कि एशियाइयोंको जबरदस्ती बाजारोंमें भेज दिया जाये । किन्तु मुझे विश्वास है कि जब कभी कोई ऐसा प्रयास किया जायेगा, भारतीय उसका विरोध करेंगे ।

चेचक

[प्रश्नकर्ता :] परन्तु, श्री गांधी, चेचक फैलने तथा एशियाइयों द्वारा उसके मरीजोंके छिपाये जानेके बारे में आपका क्या कहना है ? क्या इससे यह नहीं व्यंजित होता कि यूरोपीयोंकी सुरक्षाके लिए ऐसी कोई कार्रवाई आवश्यक है ?[२]

आपका यह प्रश्न बहुत उचित है । निस्सन्देह, हमारे बीच समाजको कलंकित करनेवाले ऐसे कुछ लोग हैं और हमें उनके गलत कामोंके लिए दण्ड भी भोगना पड़ता है; परन्तु डॉक्टर पोर्टरके सौजन्यसे इस बातका पर्याप्त प्रमाण जनताके सामने प्रस्तुत हो गया है कि समाजके नेताओंने छिपाये गये मरीजोंका पता लगाने में उनके साथ हार्दिक सहयोग किया था। डॉक्टर पोर्टरने यह भी स्वीकार किया है कि उनके सहयोगके बिना वे इन मरीजोंका पता नहीं लगा सकते थे। आपको शायद याद होगा कि जब अस्वच्छ क्षेत्र स्वामित्वहरण आयोग (इनसैनिटरी एरिया एक्सप्रोप्रि- एशन कमीशन) के सामने गवाही दी जा रही थी, उस समय इस आशयका डॉक्टरी प्रमाण पेश किया गया था कि ब्रिटिश भारतीयों या अन्य लोगोंके बीच जो सफाईके प्रति लापरवाही दिखाई जाती है, उसे दूर करनेका सफल तरीका यह नहीं है कि उन्हें आम लोगोंसे कोई सम्बन्ध नहीं रखनेवाले बाजारों या ऐसे स्थानोंमें भेज दिया जाये जिनकी ठीक तरह से सरकारी देखभाल न की जा सकती हो। इस समस्याको हल करने का सही उपाय यह है कि उनकी गतिविधिको मुक्त छोड़ दिया जाये, किन्तु सफाई सम्बन्धी उपनियमोंको कारगर ढंगसे लागू किया जाये, और यदि ये उपनियम अपर्याप्त हों तो उनके क्षेत्रको इतना व्यापक कर दिया जाये कि उनमें सभी प्रकारके मामले आ जायें ।

 
  1. अध्यादेशके खण्ड ६६ में नगर परिषदोंको नये बाजार बसाने या पुरानोंको बन्द करनेका अधिकार दिया गया था; देखिए परिशिष्ट ७ ( क ) । इस प्रकारका पहला कानून मिलनरका बाजार-नोटिस था; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ ३१४-१५ ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक ।