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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं १८ वर्ष से अधिक समयके निजी अनुभव के आधारपर कह सकता हूँ कि चेचकके भयके निवारणका यह सर्वोत्तम और एकमात्र उपाय है।[१] नगरोंसे दूर किसी कोने में बसी आबादीकी निगरानी ठीक तरह नहीं हो पाती। तब, जरा सोचिए कि यदि भारतीय [ मुख्य आबादीसे ] चार-पाँच मील दूर ऐसी ही कच्ची देखरेख में रहते होते, तो क्या हालत होती ? चेचकके हर मरीजको लोग सफलतापूर्वक – समाजके नेताओंसे भी छिपा-लेते और फिर डॉ० पोर्टरके लिए महामारीके संक्रमणको रोकना अत्यन्त कठिन कार्य हो जाता। मुझे पूरा विश्वास है कि पृथक्करणकी नीति कभी सफल नहीं होगी ।

मेरी समझसे तो होगा यह कि एक समय ऐसा आयेगा, जब सर्वसाधारण यूरोपीय जनसमुदाय अपने भारतीय सह-नागरिकोंकी समृद्धिमें भी उतनी ही दिलचस्पी लेगा जितनी कि अपनी समृद्धिमें लेता है और यदि उनमें कुछ कमजोरियाँ हों तो वह उनके प्रति समुचित सहिष्णुता दिखाते हुए उन्हें उत्तरोत्तर अच्छे नागरिक बनाने का भी आग्रह रखेगा ।

शाही हस्तक्षेप

इसके बाद प्रतिनिधिने श्री गांधीसे पूछा कि हाल ही में लॉर्ड सभामें एक प्रश्नके उत्तरमें लॉर्ड एमॉटने ऐसा संकेत दिया है कि साम्राज्य सरकारने नगरपालिका अध्यादेशके मसविदेमें संशोधन कराने के लिए हस्तक्षेप किया है,[२] सो उसके ऐसा करने के अधिकारके सम्बन्ध में आपका क्या विचार है। श्री गांधीने कहा कि मेरे विचारसे तो उसे हर तरह से ऐसा करनेका अधिकार प्राप्त है ।

वास्तव में हमारा विचार यह है कि शाही सरकारका रुख अत्यधिक सावधानीका रहा है और उसने गलती संघ-सरकारके पक्षमें की है । यह ध्यान रखना चाहिए कि संघ अब भी अपनी शैशवावस्थामें है; और शाही सरकारकी भारतीयोंके प्रति बड़ी जिम्मेदारी है। मैं अभी-अभी अंग्रेजी समाचारपत्रका एक उद्धरण पढ़ रहा था। आप भी उसे पसन्द करेंगे। उसमें लिखा है कि सम्राट् जॉर्जकी भारत यात्राका एक मुख्य कारण यह था कि वे स्वशासित उपनिवेशोंके लोगोंकी कल्पनाको एक बार झकझोर देना चाहते थे ताकि वे भारतकी महत्ताको समझ सकें और उन्हें ज्ञात हो जाय कि वह भी उतनी ही प्रतिष्ठाका अधिकारी है जितनी प्रतिष्ठाके अधिकारी साम्राज्यके अन्य हिस्से हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २७-१-१९१२
 
  1. मूलमें इस वाक्यका अर्थ स्पष्ट नहीं होता । यह अर्थ अनुमानसे दिया गया है ।
  2. लॉर्ड लेमिंग्टन द्वारा लॉर्ड सभामें पूछे गये प्रश्नका उत्तर देते हुए ६ दिसम्बर, १९११ को लॉर्ड एमॉटने कहा था कि नगरपालिका - अध्यादेशका मसविंदा नगरपालिका परिषदकी विशेष समितिके विचारार्थ पेश किया गया है, और समितिकी रिपोर्ट अगले वर्षके जनवरी महीने से पूर्वं, जब उसकी फिर बैठक होगी, तैयार नहीं हो सकती । देखिए इंडियन ओपिनियन, ६-१-१९१२