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पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

न्यायकर्ताकी-सी समझ है, उसके सम्मुख एक व्यक्ति अपना अधिवासी होना सिद्ध करे; इतना ही नहीं, इसके सम्बन्धमें उसे सन्तुष्ट भी कर दे । और भी यह बात मेरी समझ में नहीं आई कि जिस स्त्रीको कोई व्यक्ति अपनी पत्नी और जिस बच्चेको अपना बच्चा बताता है, वह स्त्री और वह बच्चा उसीके हैं या नहीं, इसके निर्णयका अधिकार प्रवासी अधिकारीको क्यों सौंपा जाना चाहिए। यह नई बात है और वर्तमान कानूनी स्थिति इससे हमारे विपक्षमें हो जाती है ।

इसी प्रकार, खण्ड ७ ट्रान्सवालके शिक्षित भारतीयोंपर प्रतिबन्ध लगा देगा; उदाहरण के लिए, वे मौजूदा शिक्षा परीक्षा पास करनेके बाद भी, नेटालमें प्रवेश नहीं कर सकेंगे। यह बात भी मौजूदा कानूनी स्थितिको बदल देती है; यह सरासर अन्याय है। समुद्री रास्ते से होनेवाले प्रवेशकी रोकथामके लिए लगभग एक असम्भव-सी शिक्षा परीक्षाका[१]रखा जाना एक बात हैं, और उस परीक्षाको अन्तरप्रान्तीय प्रवासके लिए लागू करना दूसरी बात । मैं आपका ध्यान इस तथ्य की ओर भी आकर्षित कर रहा हूँ कि पिछले वर्षका विधेयक मौजूदा स्थितिमें[२] हस्तक्षेप नहीं करता था ।

खण्ड २५, उपखण्ड २, मसविदेके उस तीन-साला नियमको देखते हुए फिर भी अच्छा है जो आपने मुझे अवलोकनार्थ दिया था; यद्यपि वह अभीतक अत्यधिक कठोर है। मैं बेशक यह मानता हूँ कि जो एशियाई इस समय दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए हैं उन्हें अपने लिए स्थायी अधिवास प्रमाण-पत्र माँगनेका अधिकार है; उक्त प्रमाणपत्र पानेके लिए उनका प्रवासी अधिकारीकी कृपापर छोड़ दिया जाना उचित नहीं है । यह सच है कि धारा केवल अनुमतिपरक है, और प्रमाणपत्र लेनेके लिए कोई भी बाध्य नहीं है, परन्तु इसका असर निश्चय ही यह होगा कि एशियाइयोंको, खासकर गरीब वर्गके एशियाइयोंको, लगभग मजबूर होकर प्रमाणपत्रोंकी याचना करनी पड़ेगी और तब उनके कागजोंपर मनमाना अनुपस्थिति-काल मुकर्रर कर दिया जायेगा ।

इसलिए मैं आशा करता हूँ कि ये तीन मुद्दे सन्तोषजनक रूपसे हल किये जायेंगे । यद्यपि मैंने अपने कई सहयोगियोंसे इसपर सलाह-मशविरा किया है, लेकिन अभी- तक मैंने कोई सार्वजनिक कदम नहीं उठाया है, और ऐसा करनेका मेरा तबतक कोई इरादा भी नहीं है जबतक कि जनरल स्मट्सके इरादेके बारेमें आपसे खबर नहीं मिल जाती। यदि असुविधा न हो तो कृपया मुझे तार द्वारा सूचित करें कि जो मुद्दे मैंने उठाये हैं क्या उनपर जनरल स्मट्स अनुग्रहपूर्वक विचार करेंगे ।

हृदयसे आपका,

 
  1. खण्ड ७ से, संघ में रहनेवाले एशियाइयोंकी एक प्रान्तसे दूसरे प्रान्त में आने-जानेकी आजादी पूरी तौरपर खत्म हो जाती थी । यदि वे किसी दूसरे प्रान्त में जाना चाहते थे तो उनके लिए संघकी प्रवास सम्बन्धी कड़ी शिक्षा परीक्षा में उत्तीर्ण होना अनिवार्य था ।
  2. वापस ले लिये गये विधेयकके खण्ड ७ में अन्तरप्रान्तीय आवागमनके बारेमें कुछ बातें दी हुई हैं; उसे खण्ड ६ के साथ मिश्रित करके पढ़ना होगा; देखिए खण्ड १० पृष्ठ ५५८-५९ । इसमें अन्तरप्रान्तीय प्रवासके लिए किसी प्रकारकी शैक्षणिक परीक्षाकी कोई बात नहीं रखी गई है, परन्तु गांधीजीके मनमें उस समय भी इसके सम्बन्धमें सन्देह बना हुआ था। यह बात ग्रेगरोवस्कीके नाम लिखित उनके पत्रसे स्पष्ट है । देखिए खण्ड १०, पृ४ ४४४-४६ ।