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तार : गृहमन्त्रीके निजी सचिवको

अन्तर्गत ज्ञापन लेना । मुझे आशा है कि इन मुद्दोंपर जनरल स्मट्स अनुकूल विचार करेंगे इसलिए सार्वजनिक कार्रवाई रोक दी है। तार द्वारा उत्तरकी प्रतीक्षा । कृपया यह भी सूचित करें कि दूसरा वाचन कब होगा ।[१]

गांधी

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रजी प्रति (एस० एन० ५६०४) तथा ( एस० एन० ५६१९) की फोटो - नकलसे भी ।

१८०. तार : गृह मन्त्रीके निजी सचिवको

[ लॉली ]
फरवरी १, १९१२

लम्बे उत्तरके[२] लिए जनरल स्मट्सको धन्यवाद; दुःख है कि है ।वह असन्तोषप्रद है । मुझे विश्वास कि निकाय (बोर्ड) के नियन्त्रणसे भारतीय सन्तुष्ट नहीं होंगे, विशेषकर निकायोंके पिछले अनुभवको देखते हुए। प्रजाको न्यायिक न्यायाधिकरणों (ज्यूडिशियल ट्रिब्यूनल) में अपीलके अधिकारसे वंचित करनेपर वर्तमान कानूनी अधिकारोंमें गड़बड़ी अवश्य होगी। यह कहना भी तर्क- सम्मत नहीं कि खण्ड ७ के अन्तर्गत मिले वर्तमान अधिकारोंमें गड़बड़ी नहीं होगी, क्योंकि मौजूदा परीक्षा पास करके शिक्षित भारतीय आज नेटाल या केपमें जाकर बस सकते हैं। यह आशा कैसे की जा सकती है कि वे इस कानूनी अधिकारके बदले प्रशासकीय मर्जीके मोहताज होनेकी बात मान लेंगे, भले ही उसमें न्यायका पुट ही क्यों न हो ? नेटालके भारतीयों का अनुपस्थितिके अस्थायी अनुमतिपत्र स्वीकार करना स्पष्ट ही अपनी कानूनी स्थिति में परिवर्तन स्वीकार करना है । इस समय जारी किये जानेवाले प्रमाणपत्रोंमें सम्बन्धित व्यक्तिका पूरा वृत्तान्त रहता है और यदि उनको किसी दूसरेके नामपर किया जाये तो पता चल ही जायेगा । जनरल स्मट्स निश्चय ही नहीं चाहेंगे कि प्रतिष्ठित भारतीय फ्री स्टेट कानूनके खण्ड ८ के अन्तर्गत अपना शिनाख्ती ब्योरा दर्ज करायें । उसे दर्ज कराये बिना वे व्यापार या खेती करने में असमर्थ रहेंगे, क्योंकि यह केवल उनके लिए माना जाता है जो फ्री स्टेटमें घरेलू नौकरियोंके लिए बसना चाहते हैं। शिनाख्ती ब्योरा दर्ज कराना संघर्षकी पूरी भावनाके विरुद्ध जान पड़ता है, संघर्ष आत्म-सम्मानकी खातिर ही शुरू किया गया था । आशा यह उचित परिवर्तन स्वीकार होगा और संघर्षकी भयावह

 
  1. द्वितीय वाचन ३० मईसे पहले नहीं हुआ ।
  2. देखिए परिशिष्ट १४