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नया प्रवासी विधेयक

सकते हैं और नेटालके भारतीयोंको कुछ समय पहले तक वहाँ अपना निवास प्रमाणित कर देनेपर अधिवासका प्रमाणपत्र अधिकारके रूपमें मिलता रहा है। नये विधेयकके अन्तर्गत, अधिवासी एशियाइयों और उनकी पत्नियों तथा बालकोंके अधिकारोंपर विचार करनेके लिए प्रवासी अधिकारी ही उच्चतम न्यायालय के रूपमें प्रतिष्ठित होगा; ट्रान्सवालके शिक्षित भारतीयोंको नये विधेयकके अनुसार केप या नेटालमें जानेके लिए अधिक कठिन परीक्षा पास करनी पड़ेगी और नेटालके भारतीय अधिवास प्रमाणपत्रकी माँग अधिकारके रूपमें नहीं कर सकेंगे।[१] ये सब निर्योग्यताएँ नई हैं और सत्याग्रहियोंसे यह आशा नहीं की जा सकती कि वे इन्हें स्वीकार कर लेंगे, परन्तु हमारा खयाल है कि ये बातें भूलसे छूट गई हैं। और जनरल स्मट्स समितिमें विचार करते समय त्रुटियोंको सुधार लेंगे। फ्री स्टेटकी कठिनाई पिछले साल दिये गये सुझावके अनुसार हल की जा रही है;[२] फिर भी इतना ध्यान तो रखना ही पड़ेगा कि जो भारतीय शिक्षित प्रवासीकी हैसियतसे फ्री स्टेटमें प्रविष्ट हो उसे फ्री स्टेटके संविधानके अध्याय ३३ के खण्ड ८ के अनुसार कोई ज्ञापन देनेके लिए बाध्य न किया जाये । यदि ये बातें साफ कर दी जायें तो हम समझते हैं कि सत्याग्रहियोंकी सारी माँगें पूरी हो जायेंगी ।

परन्तु नेटाल और केपवालोंकी सामान्य आपत्तियाँ इसपर भी शेष रह जाती हैं।[३] शिक्षा-सम्बन्धी नई परीक्षाके विरुद्ध उनका शिकायत करना न्यायसंगत होगा । कमसे कम उन्हें इतनी गारंटी तो दे ही दी जानी चाहिए कि कुछ शिक्षित भारतीयोंको शैक्षणिक जाँचमें उत्तीर्ण किया जायेगा ।

इसके बाद भी एशियाइयोंकी दृष्टिसे विधेयकमें असन्तोषके योग्य कई बातें रह जायेंगी । विभिन्न प्रान्तोंमें आने-जानेपर प्रतिबन्ध एक बड़ी शिकायतका कारण बना रहेगा ।[४]ट्रान्सवाल या फ्री स्टेटमें वैध निवासियोंपर भी भूमि आदिके स्वामित्वसे सम्बन्धित निर्योग्यता भारतीयों और अन्य एशियाइयोंकी समृद्धिके मार्गकी एक बड़ी

 
  1. फरवरी ३, १९१२ के इंडियन ओपिनियनके गुजराती विभागमें, सभी भारतीयोंके लिए, एक नोटिस प्रकाशित हुआ था जिसका मसविदा अनुमानतः गांधीजीने तैयार किया था। नोटिस में कहा गया था कि "केप या नेटालमें रहनेवाले ऐसे किसी भी भारतीयको फिलहाल अपना प्रान्त नहीं छोड़ना चाहिए, जिसके पास सही अधिवास प्रमाणपत्र न हो। "
  2. देखिए खण्ड १०, पृष्ठ ५३५-३७ और " पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ९-१० ।
  3. फरवरी ४ को नेटाल भारतीय कांग्रेसकी एक सभामें (क) प्रवासी विधेयक तथा उसके अन्तर्गत प्रदत्त विस्तृत प्रशासनिक अधिकारों और (ख) अधिवास और विवाह तथा वल्दियतके अत्यन्त प्राविधिक मामलों के सम्बन्ध में प्रवासी अधिकारीको दिये गये विवेकाधिकारका विरोध करते हुए प्रस्ताव पास किये गये । समाने नेटालवासी भारतीयोंके इस अधिकारकी भी माँग की कि उन्हें सरकार स्थायी अधिवास प्रमाणपत्र दे । उसमें शिक्षा परीक्षा, अन्तरप्रांतीय प्रवासपर प्रतिबन्ध तथा उन नेटालवासी भारतीयोंके अधिकार छीने जानेके प्रति विशेष प्रकट किया गया, जो उस प्रान्त में अपना तीन सालका अधिवास सिद्ध कर सकते थे ।
  4. देखिए “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ २१०-११ तथा गृहमन्त्रीके निजी सचिवके नाम तार पृष्ठ २१२-१३ और २१३-१४ ।