पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/२५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बाधा बनी रहेगी। आखिर ये भी तो उसी दक्षिण आफ्रिकी राष्ट्रके अंग हैं जो कि इस समय निर्माणको प्रक्रियाओंमें से गुजर रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ३-२-१९१२

१८३. स्व० श्री अब्दुल्ला हाजी आदम

नेटालके भारतीय समाजके महानतम व्यक्तियोंमें से एक उठ गया। दादा अब्दुल्ला ऐंड कं० की प्रसिद्ध पेढ़ीके मालिक श्री अब्दुल्ला हाजी आदम झवेरी[१]५८ वर्षकी अवस्थामें गत सोमवारको अपनी विधवा पत्नी और समस्त भारतीय समाजके अति- रिक्त, अनेक यूरोपीय मित्रोंको शोकाकुल छोड़कर सिधार गये। नेटालके भारतीयोंके राजनीतिक और व्यापारिक जीवनसे उनका घनिष्ठ सम्बन्ध था । वे नेटालमें आकर पहले-पहल बसनेवाले स्वतन्त्र भारतीयोंमें से एक थे । वे स्व० अबूबकर आमदके?[२] आनेके कुछ ही दिनों बाद यहाँ आये थे। श्री अब्दुल्ला हाजी आदम और उनके साझीदार गत शताब्दीके अन्तिम दस वर्षोंमें दक्षिण आफ्रिकाके शायद सबसे बड़ भारतीय कारोबारके मालिक थे । एक समय तो उनकी पेढ़ीकी शाखाओंकी संख्या शायद पन्द्रह तक पहुँच गई थी और इंग्लैंड, जर्मनी तथा भारतके साथ उनका हजारों पौंडका व्यापार होता था । दक्षिण आफ्रिकामें वे पहले ही भारतीय थे जिन्होंने जहाजोंकी खरीदका काम शुरू किया। 'कूरलैंड' और 'खदीब' नामक जहाज उन्होंने खरीद लिये थे । श्री अब्दुल्ला हाजी आदमकी दक्षता जैसी व्यापारमें बढ़ी चढ़ी थी वैसी ही राजनीतिक मामलोंमें भी थी । नेटाल इंडियन कांग्रेसके वे संस्थापक अध्यक्ष थे । अपनी मातृभाषा में उनकी वक्तृत्व-शक्ति भी खासी थी । यद्यपि उन्होंने अंग्रेजी काम करते-करते ही सीखी थी, परन्तु वे अंग्रेजीमें आसानीसे घंटों बहस-मुबाहिसा कर सकते थे। उनके यूरोपीय मित्र यह देखकर चकित रह जाया करते थे कि अपनी वातको सिद्ध करनेके लिए वे कहाँ-कहाँसे कैसी-कैसी युक्तियाँ और उपयुक्त उदाहरण खोज निकालते थे। वे कई बार नेटाल सरकारके समक्ष शिष्ट-मण्डलोंके नेता के रूप में गये थे • विशेषतः स्व० सर जॉन रॉबिन्सनके[३]प्रधान मन्त्रित्वकालमें । उन्होंने बीमारीकी हालत में भी राजतिलकके उत्सवका बहिष्कार करनेके आन्दोलनमें प्रमुख

 
  1. इन्होंने सन् १८९३ में गांधीजीको अपना मामला एक अंग्रेज वकीलको समझानेके लिए बुलाया था।
  2. अबुबकर आमद झवेरी; ट्रान्सवालमें प्रारम्भमें ही बसनेवाळे भारतीयों में से एक; रेशमी और सजावट के सामानोंके प्रमुख व्यापारी; और ट्रान्सवालके एकमात्र भारतीय, जिनके नामपर वहाँ जमीनकी मिल्कियत भी थी। उनकी मृत्युके बाद उनकी जमीनके उत्तराधिकारके प्रश्नको लेकर भारी विवाद खदा हो गया था; क्योंकि इस जमीनका स्वामित्व उन्होंने १८८५ का कानून ३ लागू होनेके पूर्व ही प्राप्त किया था ।
  3. (१८३९-१९०३ ); नेटाल्के प्रथम प्रधान मन्त्रो और उपनिवेश सचिव, १८९३-९७ ।