पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/२५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२१९
नया प्रवासी विधेयक

 

टिप्पणी

इसका प्रभाव यह होगा कि यदि किसी केपवासी भारतीयको नेटालमें रहनेका अधिकार नहीं है, तो वह उस प्रान्तमें जमीनका मालिक अथवा व्यापारी नहीं हो सकता ।

खण्ड २३

यह सिद्ध करनेका दायित्व [ प्रवेशके लिए इच्छुक ] व्यक्तिपर रहेगा कि वह निषिद्ध प्रवासी नहीं है ।

टिप्पणी

ऐसा खण्ड इस तरहके सभी कानूनोंमें है ।

खण्ड २५ (१)

अस्थायी अनुमतिपत्र अपनी शर्तोंपर जारी करनेका अधिकार सरकार अपने पास सुरक्षित रखती है।

टिप्पणी

सरकार चाहे तो इस खण्डके अनुसार जिन व्यक्तियोंकी सेवाएँ जरूरी समझी जायें उन्हें प्रवेशकी अनुमति दे सकती है।

खण्ड २५ (२)[१]

यदि [ प्रवासी] अधिकारी चाहे तो ऐसे किसी भी व्यक्तिको, जिसे अपना हक मारे जानेका डर हो, उसके बाहर जाते समय फिरसे प्रान्त अथवा संघ में प्रवेश करनेका अस्थायी अनुमतिपत्र दे सकता है ।

टिप्पणी

ऐसा आपत्तिजनक खण्ड केपके कानूनमें पहलेसे है । लेकिन नेटालके लिए यह नया है । अनुमतिपत्र लेना लाजिमी नहीं है, लेकिन गरीब लोग तो [ अगर वापस आनेपर वे अपने प्रवासका अधिकार सिद्ध करने में असमर्थ हुए तो ] बिलकुल तबाह ही हो जायेंगे। नेटालको इस खण्डका तीव्र विरोध करना चाहिए । सत्याग्रही भी विरोध कर सकते हैं । अभी यह नहीं कहा जा सकता कि उन्हें विरोध करना ही चाहिए । ऐसा अनुमतिपत्र न लेनेपर भी किसीका अधिकार नहीं छिनता और वह अन्य प्रकारके प्रबन्ध करके नेटालसे बाहर जा सकता है ।

खण्ड २८ (१) और (२)

जो [ इमला ] लोग परीक्षा देकर संघ में प्रवेश करेंगे, उनपर १९०८ का अधि- नियम ३६ ( एशियाई कानून २ ) लागू नहीं होगा, लेकिन ऑरेंज फ्री स्टेटके कानूनके खण्ड ७ और ८ लागू होंगे ।[२]

  1. यह अधिकार वस्तुतः मन्त्रीको था (परिशिष्ट १३), लेकिन यहाँ गांधीजीने यह मान लिया है कि व्यावहारिक रूपमें यह अधिकार प्रवासी अधिकारीको ही दिया जायेगा ।
  2. ऑरेंज फ्री स्टेटके संविधानका ३३वाँ प्रकरण ।