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१८६. पत्र : रावजीभाई पटेलको

माघ वदी २ [ फरवरी ४, १९१२[१]]

भाईश्री रावजीभाई,

आपका पत्र मिला । मैंने अपना विचार बदला नहीं है; परन्तु यदि आपके पिताजी आपको फीनिक्स आनेसे मना करते हैं तो आपको मना करना मेरा धर्म है। आपका धर्म भी वैसा ही है । परन्तु यदि आपके पिताजी आपसे स्पष्ट अधर्म करायें तो मैं उसमें से मुक्त कराने के लिए आपको फीनिक्स में ले सकता हूँ । मुझे लगता है कि जब हम नीतिके बन्धनोंमें बँध जायें और माँ-बाप किसी खास कदमको उठाने से हमें रोकें तब हम उस सम्बन्धमें चुप होकर बैठनेपर विवश हैं । किन्तु जब वे हमसे कोई पाप ही कराना चाहें तो हमें वह नहीं करना चाहिए। इस सम्बन्ध में केवल प्रह्लादजीके उदाहरण ही की याद दिलाई जा सकती है। इसके अतिरिक्त पिताकी आज्ञासे सभी शारीरिक कष्ट उठाये जा सकते हैं; उससे आत्मिक दुःख नहीं हो सकता ।

आप व्यापारमें रहकर नीतिका पालन कर सकते हैं। उससे आपका शिक्षण होगा और आप जिस तरहका जीवन बिताना चाहते हैं उसकी तैयारी होगी। इसके अतिरिक्त यदि आप अपने व्यापारमें पूरी ईमानदारीका आचरण कर सकेंगे तो आप अपने व्यापारसे दूसरोंका उपकार करेंगे। कोई भी ग्राहक आये, उससे एक ही दाम और वाजिब मुनाफा लें। जो वस्तु आपके लिए त्याज्य है उसे न बेचें...। ग्राहकों से नम्रतासे बात करें । [ किन्तु ] अपना माल बेचने के लिए उनकी चापलूसी भी न करें । यदि नौकर हों तो उनके साथ यह मानकर बरताव करें कि वे आपके भाई हैं । इन सब बातोंका पालन आसानीसे किया जा सकता है । आपको ऐसा नहीं लगना चाहिए कि व्यापारमें रहना तो लालच में पड़ने के समान है, क्योंकि आपने व्यापार अनीतिके लिए ही पसन्द नहीं किया है । आप तो केवल पिताजीकी आज्ञामें रहनेके कारण ही व्यापार करेंगे। इसलिए उसमें ईमानदारी बरतना आसान होना चाहिए । आप बताते हैं कि आपको पैसेका लोभ नहीं है। हम जिस स्थितिके सम्बन्धमें वीतराग रहें उसमें हम दुःख पा सकते हैं; परन्तु उसमें भ्रष्ट नहीं हो सकते । प्रह्लादजी राक्षसोंके मध्य रहते हुए विष्णु भगवान् ‌के भक्त बने रहे। मुझे नहीं लगता कि इसमें उन्हें कुछ कठिनाई हुई होगी, क्योंकि वे राक्षसी प्रवृत्तियोंके प्रति पूर्णतः वीतराग थे ।

 
  1. यह पत्र रावजीभाई पटेलको नवम्बर २९ को लिखे पत्र (पृष्ठ १८७-८८ ) के बादका प्रतीत होता है । इसपर भारतीय तिथि दी गई है, किन्तु संवत् नहीं । यदि हम यह मान लें कि यह पत्र भी भारतीय तिथिके अनुसार उसी वर्ष लिखा गया जिस वर्षं पिछला पत्र लिखा गया था ( और यह मानना असंगत प्रतीत नहीं होता) तो उस दृष्टिले ईसवी सन्की उपर्युक्त तिथि ही देनी पड़ेगी, क्योंकि उस वर्ष माघ वदी २ को १९१२ के फरवरी माहकी ४ तारीख पड़ी थी ।