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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  मनुष्य सूलीपर बैठकर भी अपने व्रतका पालन कर सकता है। जो व्रत ऐसे समय में भी पाला जाता है वही सच्चा व्रत होता है । यदि वह नीति हमारे लिए स्वाभाविक हो जाये और हमारे रोम-रोम में बस जाये तो उसका पालन अवश्य ही हो सकेगा। इस हद तक इसे विकसित करना हम सबका कर्त्तव्य है । मैं यह कामना करता हूँ कि आपकी यह सदिच्छा फलवती हो ।

मोहनदासका यथायोग्य

गुजराती पुस्तक 'गांधीजीनी साधना'; रावजीभाई पटेल; नवजीवन प्रकाशन मन्दिर, अहमदाबाद, १९३९

१८७. प्रस्ताव : केप ब्रिटिश भारतीय यूनियनको सभामें[१]

केप टाउन,
फरवरी ४, १९१२

प्रस्ताव १

अध्यक्ष तथा वक्ताओंके भाषण सुनने और प्रवासी विधेयकके पाठसे अवगत होने के पश्चात् यह सभा इस प्रस्ताव द्वारा सर्वसम्मति से अध्यक्षके इस मतकी ताईद करती है कि भारतीय समाज के अधिकारोंको गम्भीर रूपसे खतरा पैदा हो गया है। सभा विधेयकके वर्तमान स्वरूपमें उसका अननुमोदन करती है और अध्यक्ष तथा मन्त्रीको प्राधिकृत करती है कि वे अध्यक्षके भाषण में सुझाये गये तरीकेसे विधेयकके पाठमें रद्दोबदल कराने के लिए समूचे आंग्ल-ब्रिटिश भारतीय समाजकी ओरसे संसद में प्रार्थनापत्र भेजें और उसके लिए आगेकी आवश्यक तथा उचित कार्रवाई करें। सभाके सदस्य व्यक्तिगत रूपसे उसका जोरदार समर्थन करने और जहाँ भी सम्भव हो, सहायता करनेका वचन देते हैं ।

प्रस्ताव २

यह सभा समुद्र-पारके प्रवासियों और दूसरे प्रान्तमें प्रवेश या निवासके इच्छुक किसी एक प्रान्तके अधिवासियों, दोनों ही के लिए रखी गई नई श्रुतिलेख परीक्षाके मनमाने ढंगका विरोध करती है ।

  1. ये प्रस्ताव अध्यक्ष ई० नोरोदियेनके सभापतित्वमें फरवरी ४, १९१२ को हुई संघकी एक सभामें, जिसमें उपस्थिति बड़ी शानदार थी, सर्वसम्मति से पास किये गये थे और संघ प्रवासी विधेयकपर केपके भारतीयों द्वारा उठाई गई आपत्तियाँ जाहिर करनेवाले एक प्रार्थनापत्र के साथ केपकी सीनेट और विधानसभाको भेजे गये थे; देखिए इंडियन ओपिनियन, १७-२-१९१२ । अनुमानतः इनका मसविदा गांधीजीने तैयार किया था, क्योंकि सभाके दो दिन पहले मकादम नामक किसी व्यक्तिने उनको केप टाउनसे तार द्वारा सभाकी तिथि सूचित करते हुए प्रस्तावोंका मसविदा तारसे भेजनेके लिए लिखा था। जिस कागजपर तार मिला था उसीपर गांधीजीने शीघ्रता से मसविदा बना डाला था; देखिए “एक टिप्पणी ", पृष्ठ २१४ । मकादमके तारके पाठके लिए, देखिए इसी शीर्षककी पाद-टिप्पणी ।