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पत्र : ई० एफ० सो० लेनको

रीतिसे भेजना चाहते हों, वे वैसा भी कर सकते हैं। हमारा हेतु इतना ही है कि जिन्हें अकालकी स्थितिकी गम्भीरताका भान है उन्हें देशकी मदद करनी चाहिए । इसमें किसी प्रकारकी प्रसिद्धि प्राप्त करनेका कोई सवाल नहीं है ।

हमारा इकट्ठा किया हुआ चन्दा बहुत मामूली है, यह हम जानते हैं । जो नेता अपने सिरपर उत्तरदायित्व लेकर बड़े पमानेपर चन्दा इकट्ठा करना चाहें, वे वैसा कर सकते हैं और उसमें उनकी शोभा है । कोई ऐसी बड़ी राशि इकट्ठा न की जा सके, तो हम मानते हैं कि सब भारतीयोंको इसी कोषमें यथाशक्ति चन्दा देना चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १०-२-१९१२

१९३. पत्र : ई० एफ० सी० लेनको

फरवरी १५, १९१२

प्रिय श्री लेन,

आपने प्रवासी विधेयकके सम्बन्धमें उत्तर[१]देनेका वादा किया था। मैं अब भी उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मैंने अपने तारोंमें[२] जो बातें संक्षेपमें कहीं थीं उन्हें अब यहाँ फिरसे निवेदित कर रहा हूँ

धारा ५ के उपबन्ध (च) और (छ) के बारेमें निवेदन है कि यदि उसका अभिप्राय वही है जो आपने अपने तारमें [३]बताया है, अर्थात् अदालतोंका अधिकार समाप्त नहीं होता, तो यह सर्वथा सन्तोषजनक है। हालाँकि आपने अपने तारमें मुझे इस सम्बन्धमें आश्वासन दिया है फिर भी नेटाल न्यायपीठके[४]निर्णयको देखकर उक्त धाराके बारेमें में हताश हो गया हूँ और इसलिए स्वयं कानूनी सलाह ले रहा हूँ ।[५]

खण्ड ७ के विषय में निवेदन है कि यदि एशियाइयोंकी वर्तमान कानूनी स्थिति, अर्थात् शिक्षित भारतीयोंका यह अधिकार कायम रखा जाये कि नेटाल या केपके

  1. गृह मन्त्रीको भेजे गये फरवरी ८, १९११ के तार (देखिए पृष्ठ २२४ ) का उत्तर ।
  2. जनवरी ३०, फरवरी १, फरवरी ७ और फरवरी ८ के तार, जिनके लिए देखिए क्रमशः पृष्ठ २१२- १३, २१३-१४, २२४ और २२४-२५ ।
  3. गृह-मन्त्रीके निजी सचिव द्वारा भेजा गया ७ फरवरीका तार; देखिए परिशिष्ट १५ ।
  4. मुहम्मद मूसा नाथलिया बनाम मुख्य प्रवासी अधिकारीकेमामले में सर्वोच्च न्यायालयके नेटाल डिवीजन (प्रभाग) ने प्रवासी अधिकारीके निर्णयमें हस्तक्षेप करनेसे इनकार कर दिया था । उक्त प्रवासी अधिकारीने अपने विवेकाधिकारका उपयोग करते हुए यह निर्णय दिया था कि नौजवान नथालियाने जो प्रमाण पेश किये हैं वे यह सिद्ध करनेकी दृष्टिसे अपर्याप्त हैं कि वह उसी व्यक्तिका पुत्र है जिसका पुत्र होनेका दावा करता है । अपील अदालतने सर्वोच्च न्यायालयकी नेटाल पीठके निर्णयके विरुद्ध अपीलकी अनुमति भी नहीं दी । देखिए इंडियन ओपिनियन, ३-२-१९१२, १०-२-१९१२ और १७-२-१९१२ ।
  5. देखिए अगला शीर्षक ।