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पत्र : चंचल बहन गांधीको

न्याय-मन्त्री ही अधिक अच्छी तरह दे सकते थे और अब गृह-विभाग भारतीय कांग्रेस से उसका उत्तर मांग रहा है। वास्तवमें जब समन्स जारी करनेवाली अदालतमें यह प्रश्न उठा था तब उसका उत्तर देनेसे इनकार करके यह कह दिया गया कि इसके बारेमें न्याय मन्त्रीके जरिये जानकारी प्राप्त कर ली जाये ।

इस प्रकार हम देख रहे हैं कि शक्तिशाली सरकार अपनी जबरदस्त ताकतका उपयोग उन गरीब और असहाय भारतीय नर-नारियोंको कुचलने में कर रही है जिन्होंने नेटालको समृद्ध बनानेके लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया है । इन गरीब लोगों की बहादुरी के साथ रक्षा करना नेटाल भारतीय कांग्रेसका कर्तव्य है । गृह मन्त्री को कांग्रेस उत्तर कैसा भी दे, हर हालत में यह देखना उसका काम है कि असहायोंकी पुकार व्यर्थ न जाये ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १७-२-१९१२

१९६. पत्र : चंचल बहन गांधीको

[ लॉली ]
माघ वदी ० [ फरवरी १८, १९१२][१]

चि० चंचल,

तुम्हारा पत्र कई महीने बाद मिला । मैं चाहता हूँ कि तुम पत्र लिखने में कम आलस्य किया करो।

मैं यह अच्छी तरह समझ सकता हूँ कि तुम्हारी इच्छा चि० हरिलालके साथ रहनेकी ही होगी। इस सम्बन्धमें मैं बिलकुल आड़े नहीं आना चाहता । तुम दोनोंको जैसा रुचे वैसा रहना और करना । मेरी इच्छा तो यही हो सकती है कि तुम्हें सुख प्राप्त हो और तुम सुखी रहो।

कान्तिके[२]लिए तुम मेलिन्स फूडका प्रयोग करती हो, यह मुझे तो ठीक नहीं लगता। मैं तो भारतमें एक भी विदेशी वस्तुका प्रयोग करना पाप समझता हूँ । फिर किसी खानेकी विदेशी वस्तुका प्रयोग करना तो जरा भी नहीं सुहाता। मुझे तो यही लगता रहता है कि उनकी बनाई हुई समस्त वस्तुएँ अपवित्र हैं। उन्हें चर्बी और दारूका प्रयोग करने में आपत्ति नहीं होती, इसलिए उनकी जिन वस्तुओंमें चर्बी और दारू आदि चीजें नहीं होतीं वे भी उनकी छूतसे सर्वथा मुक्त नहीं होतीं। हमारे बच्चे पहले इन वस्तुओंके बिना ही बड़े हो जाते थे, ऐसा जानकर और मानकर हमें भी इन वस्तुओंके बिना काम चलाना चाहिए। मेरी सलाह तो यही है। गेहूँको

 
  1. इससे अगला पत्र जिस दिन लिखा गया था, यह पत्र भी उसी दिन लिखा गया जान पड़ता है; देखिए १९१२ की डायरीमें १७ फरवरीके लिए लिखा गया विवरण ।
  2. चंचल बहनका लड़का ।