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२०१. गलत बयानी

नाथलिया के मामलेमें[१] लॉर्ड ऍम्टहिलकी समिति द्वारा भेजे गये प्रार्थनापत्रका उपनिवेश-कार्यालय ने जो उत्तर दिया है उसे हम इसी अंकमें अन्यत्र प्रकाशित कर रहे हैं। श्री हरकोर्टको बताया गया है कि संघकी संसद इस समय जिस विधेयक पर विचार कर रही है उससे इस “प्रकारके मामलेकी पुनरावृत्ति" नहीं होगी । इसीलिए श्री हरकोर्ट इस सम्बन्धमें कोई कार्रवाई करनेसे इनकार कर रहे हैं। तो भी नया विधेयक इस प्रकारके मामलेकी पुनरावृत्ति नहीं होने देगा, श्री हरकोर्टके इस कथन से इस मामलेकी कठोरता तो सिद्ध हो ही जाती है। स्पष्ट है कि उन्होंने अपना पत्र संघके मन्त्रियों द्वारा दी हुई जानकारीके आधारपर लिखा है । परन्तु जिन लोगोंको नये विधेयकके विषय में कुछ भी जानकारी है, वे सभी जानते हैं कि इस विधेयकके वर्तमान रूपसे ऐसा कुछ भी होनेवाला नहीं है। उससे तो वर्तमान बुराई और बढ़ेगी ही । नाथलियाके साथ यह शोचनीय घटना सम्भव ही इस कारण हुई कि प्रवासी अधिकारीको मनमाने अधिकार प्राप्त थे । ये अधिकार नये विधेयक द्वारा और भी बढ़ाये जा रहे हैं। इस प्रकारके मामलोंमें दी गई गलत बयानीका भण्डाफोड़ सुगमतासे किया जा सकता है । जब संघकी सरकारने यहाँ भी साम्राज्य सरकारको मिथ्या सूचना देने में संकोच नहीं किया तब उन मामलोंमें तो उसने जाने कैसी-कैसी मिथ्या सूचनाएँ लिख भेजी होंगी और उनके बारेमें कभी कुछ प्रकट हो ही नहीं सकता।

यह समझना कठिन है कि बालक नाथलियाके मामलेमें, जो अपने किस्मका एक ही मामला है, श्री हरकोर्टने हस्तक्षेप करने से इनकार क्यों कर दिया। अन्याय तो हुआ ही है । इसलिए वे इतना तो कर ही सकते थे कि संघ सरकारसे, दयाकी भीख देनेके लिए नहीं, उनके अपने ही अधिकारियों द्वारा की गई शरारतका निराकरण करने को कहते । सरकारकी एशियाई -विरोधी नीतिको बलिवेदीपर नाथलियाकी जो कुर्बानी हुई, वह दक्षिण आफ्रिकाके प्रत्येक भारतीयके हृदय में सदा चुभती रहेगी। अगर हम कोई अधिक निर्णयात्मक कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं, तो उसका यह अर्थ नहीं है कि हम इस अन्यायको किसी कदर कम मान रहे हैं। अलबत्ता इससे हमारी निर्बलता जरूर प्रकट होती है । परन्तु साम्राज्य सरकार या संघ-सरकार निःशंक

  1. मामलेके विशद विवरणके लिए देखिए “एक क्षोभकारी मामला", पृष्ठ १५३-५४; "एक लज्जाजनक कृत्य " पृष्ठ १९९-२०० तथा “पत्र : ई० एफ० सी० लेनको ", पृष्ठ २२७ की पाद-टिप्पणी ४ । लन्दन- स्थित दक्षिण आफ्रिका ब्रिटिश भारतीय समितिने नाथलियाके मामलेमें हस्तक्षेप करनेमें नेटाल अदालतोंकी असमर्थताकी बावत में १९ जनवरी, १९१२ को उपनिवेश कार्यालयके नाम एक पत्र लिखा था । उत्तर में कार्यालयने ५ जनवरी, १९१२ को लिख भेजा कि “ श्री हरकोर्टका खयाल है कि संव-संसदके विचाराधीन वर्तमान प्रवासी विधेयक ऐसे किसी मामलेकी पुनरावृत्तिकी सम्भावना नहीं छोड़ता और वे इस सम्बन्धमें कोई कार्रवाई नहीं करना चाहते ।"