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श्रीमती जसातका मामला

होकर हमारी इस निर्बलतासे अनुचित लाभ उठानेका दुस्साहस न करे। जो लोग एक बार सत्याग्रहके शस्त्रका प्रयोग कर चुके हैं वे समय आनेपर फिर वैसा करनेसे नहीं चूकेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९१२


२०२. श्रीमती जसातका मामला

अगर श्रीमती जसातको देश निकाला दिया गया[१] तो ट्रान्सवाल ब्रिटिश भारतीय संघ तथा हमीदिया इस्लामिया अंजुमन और किसी हद तक दक्षिण आफ्रिकाके समस्त भारतीयोंकी नाक कट जायेगी ।

सरकारने श्री काछलियाको जो उत्तर[२] दिया है, वह सर्वथा असन्तोषजनक है । उससे यह सिद्ध होता है कि सरकारके किसी आश्वासनपर विश्वास नहीं किया जा सकता । कानून जो कहता है, वही ठीक है ।

जनरल स्मट्सने स्पष्ट लिखा था कि न्यायाधीश वेसेल्सके निर्णयके बावजूद वे कष्टदायक मामलोंमें राहत देंगे।[३]भारतीय समाज तो इसका अर्थ यही करता है कि यदि कोई यह सिद्ध कर दे कि उसने अपने धार्मिक विधान के अनुसार दो विवाह

  1. इब्राहीम मुहम्मद जसात नामक एक पंजीकृत ट्रान्सवालवासी भारतीयके दो पत्नियाँ थीं— रसूल और फातिमा । रसूल स्टेडटंनमें रहती थी और फातिमा भारतमें । रसूलके चले जानेपर जसात फातिमाको दक्षिण आफ्रिका लाना चाहता था । बारबर्टन मजिस्ट्रेटने फातिमाके प्रवेशके दावेको अस्वीकार कर दिया । उसका कहना था कि चूँकि रसूलको जसातकी पत्नीके रूपमें अधिवासका अधिकार प्राप्त हो गया है, इसलिए उसकी दूसरी पत्नीको वह अधिकार नहीं मिल सकता । फातिमाने सर्वोच्च न्यायालयकी ट्रान्सवाल न्याय पीठमें अपील की, किन्तु १३ फरवरी, १९१२ को न्यायमूर्ति वेसेल्सने उसकी अपील खारिज कर दी । अपना निर्णय देते हुए उन्होंने इससे पहले आदम इस्माइलके मामले (पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ ११५ और “जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ११६-१८) में दी गई अपनी व्यवस्थाका उल्लेख किया और कहा कि कोई भी मुसलमान केवल एक पत्नी ला सकता है और जसातके मामलेमें, उसकी वह पत्नी है रसूल, जिसे उसने तलाक नहीं दिया है । देखिए इंडियन ओपिनियन, २४-२-१९१२ ।
  2. काछलिया और बावजीर दोनोंने फरवरी १५, १९१२ को वेसेल्सके निर्णयपर आपत्ति करते हुए जनरल स्मट्सको पत्र लिखे थे । २९ फरवरी, १९१२ को ब्रिटिश भारतीय संघने उन्हें स्मरण दिलानेके लिए एक तार भी भेजा, जिसके उत्तरमें जनरल स्मट्सने २ मार्च, १९१२ को लिख भेजा कि “ श्रीमती जसातके मामलेमें ऐसी कोई असाधारण बात" दिखाई नहीं देती “जिसके आधारपर इसमें हस्तक्षेप किया जाये. ..।" देखिए इंडियन ओपिनियन, २४-२-१९१२ और ९-३-१९१२।
  3. जनरल स्मट्सने अपने १० जुलाई, १९११ के पत्रमें ब्रिटिश भारतीय संघ तथा हमीदिया इस्लामिया अंजुमनको आश्वासन दिया था कि न्यायाधीशने आदम इस्माइलके मामलेमें मुसलमान प्रवासियोंकी पत्नियोंके सम्बन्धमें जो व्यवस्था दी है, उसे नोट कर लिया गया है और भविष्य में लोगोंको ऐसी परेशानी में डालनेवाला जो भी मामला सामने आयेगा, उसपर खयाल किया जायेगा । देखिए इंडियन ओपिनियन, २२-७-१९११ और १४-२-१९१२ ।