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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

किये हैं और वह अपनी दूसरी पत्नीको लाना चाहता है तो उसे कोई कठिनाई नहीं होनी चाहिए ।

जनरल स्मट्स लिखते हैं कि इसमें उन्हें ऐसी महत्वकी कोई बात नहीं दिखाई देती। वे कौन-सी महत्वपूर्ण बात देखना चाहते हैं ? हमारे लिए तो महत्व- पूर्ण बात यह है कि श्रीमती जसात श्री जसातकी परिणीता पत्नी हैं।

श्री जसातका इरादा क्या करनेका है ? क्या वे अपनी पत्नीको निर्वासित होने देंगे और पापी पेटकी खातिर स्वयं चुपचाप ट्रान्सवालमें पड़े रहेंगे ? और उनके भाई- बन्दोंका इरादा क्या है ? श्रीमती जसातको बिना किसी अपराधके लाचार करके जब पुलिस हद पार करेगी तब वे क्या चूड़ियाँ पहनकर यों ही देखा करेंगे ?

और संघका कर्त्तव्य क्या होगा ? तार भेजने और पत्र लिखनेसे ही क्या उसका कर्त्तव्य पूरा हो गया ? क्या हमीदिया इस्लामिया अंजुमन हाथपर हाथ धरे चुपचाप बैठा रहेगा ? इस अंजुमनके कर्ता-धर्ता क्या यह नहीं समझते कि ऐसे मामलोंसे इस्लामका अपमान हो रहा है ?

इस मामलेमें यह सवाल नहीं उठता कि श्री जसात गरीब हैं या अमीर, भले हैं या बुरे । वे अपनी पत्नीको यहाँ लाये और अब सरकार उन्हें धक्का देकर बाहर निकालने के लिए तैयार है। यह धक्का हम सबको दिया जा रहा है ।

नेटाल और केप [ के भारतीयों ] को यह न समझना चाहिए कि ऐसा कानून वहाँ नहीं है ।

हम आशा रखते हैं कि श्रीमती जसात बहादुर महिला हैं और वे निर्वासित कर दिये जानेपर अपने पतिसे मिलनेके लिए फिर सीमाका उल्लंघन करके उपनिवेशमें आयेगी और यदि वैसा करते हुए जेल जाना पड़ा तो जेल भी जायेंगी ।

हमें यह भी आशा है कि श्री जसात भारतीय पतिके अनुरूप उत्साह रखते हुए अपनी पत्नीके लिए अपना सब कुछ छोड़कर जो भी कष्ट आन पड़ेगा सहेंगे, और न्याय प्राप्त करेंगे ।

हमारा खयाल है कि श्री जसातके भाई-बन्द उन्हें हिम्मत देंगे, आवश्यकता हुई तो पैसे से भी उनकी मदद करेंगे और सरकारसे न्याय दिलाने के लिए आगे आयेंगे ।

हमारा खयाल यह भी है कि संघ और हमीदिया अंजुमनके सदस्य अपने अतीतके महान कार्योंका स्मरण करके तबतक संघर्ष करते रहेंगे जबतक न्याय प्राप्त नहीं हो जाता । है

सबको याद रखना चाहिए कि हमारे पास प्रथम और अन्तिम एक ही उपचार :- सत्याग्रह, हमारे पास इसके सिवा और कुछ नहीं है।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९१२