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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हद तक अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रह पाते हैं। यह तो निश्चित है कि उनके पिता उनपर भर-सक दबाव डालेंगे ।

मैं चाहता हूं कि आप इन दोनोंको मिलने के लिए बुलायें । यदि बुलायें तो उन्हें वहाँ आनेका किराया भी दें। ये दोनों गरीबीसे रहते हैं । ये लोग प्रो० गोखलेके आगमनसे पूर्व यहाँ लौट आयेंगे ।

मोहनदासके वन्देमातरम्

गांधीजीके स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (जी० एन० १२६२) की फोटो - नकलसे ।

२०५. गिरमिटिया प्रथा-सम्बन्धी प्रस्ताव

कलकत्तेकी शाही विधान परिषद (इम्पीरियल लेजिस्लेटिव कौन्सिल) में श्री गोखलेका गिरमिटिया मजदूरोंको भारतसे बाहर भेजना सर्वथा बन्दकर देनेका प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता[१] तो एक आश्चर्यकी बात होती; परन्तु फिर भी जान पड़ता है कि निर्वासित सदस्योंमें से तो प्रायः सभीने प्रस्तावके पक्षमें मत दिया । इसलिए यह एक बड़ी नैतिक विजय है। श्री गोखले किसी कामको एक बार उठा लेनेपर फिर उसे छोड़ देनेवाले व्यक्ति नहीं हैं। इस कारण हम आशा कर सकते हैं कि गिरमिटिया मजदूरोंकी प्रथाका, जो दास प्रथाका अवशेष है, निकट भविष्य में अन्त हो जायेगा । श्री गोखलेको हम उनके महान् कार्यपर बधाई देते हैं । हम उनके ऋणी तो थे ही; उन्होंने अपने देशवासियोंके एक असहाय वर्गके लिए जो नवीनतम प्रयास किया है, उसके कारण हम उनके और भी अधिक ऋणी हो गये हैं ।

जान पड़ता है, इस प्रस्तावके विषय में कुछ गलत फहमी है। हमारे कुछ पाठकोंका खयाल है कि इससे नेटालकी वर्तमान स्थितिमें अन्तर पड़ेगा; बात ऐसी नहीं है। इस प्रस्तावके अस्वीकृत हो जानेके कारण भारत सरकार जो कुछ पहले कर चुकी है, उसपर पानी नहीं फिर जाता।[२] जिस प्रकार नेटालके लिए गिरमिटियोंकी भरती बन्दकर दी गई है, उसी प्रकार भारतके गवर्नर [ -जनरल ] को अधिकार है कि भारतीयोंके साथ सन्तोषजनक व्यवहार न होता हो तो वह चाहे जब अन्य उपनिवेशोंके लिए भी भरती बन्द कर दे। अलबत्ता, श्री गोखलेका प्रस्ताव स्वीकृत हो जाता तो उसका यह परिणाम जरूर निकलता कि सभी उपनिवेशोंके लिए गिरमिटिया प्रथाके अन्तर्गत भर्ती बन्द हो जाती ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-३-१९१२
 
  1. गोखलेका प्रस्ताव बाईसके मुकाबले तैंतीस मतोंसे अस्वीकृत हो गया था; देखिए इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९१२ ।
  2. देखिए पृष्ठ ९७, पाद-टिप्पणी ६ ।