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२०६. श्री रत्नम् पत्तर

इंग्लैंडमें अपना विद्यार्थी-जीवन सफलतापूर्वक समाप्त करके अभी-अभी एक और नवयुवक भारतीय बैरिस्टर हम लोगोंके बीच आ गये हैं; इस नवयुवकका जन्म नेटालमें हुआ है। इससे प्रकट होता है कि भारतीयोंकी नई पीढ़ी तेजस्वी है और उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। श्री रत्नम् पत्तरका जन्म और पालन-पोषण डर्बनमें हुआ था। वे यहाँके हायर ग्रेड इंडियन स्कूलमें पढ़ चुके हैं।[१]अपने स्वागतके लिए आयोजित समारोहमें उन्होंने कहा है कि मैं उत्सुकतासे उस दिनकी प्रतीक्षा कर रहा हूं जिस दिन मुझे भी भारतीय समाजके दुःख, समृद्धि और सुखमें भाग लेनेका गौरव मिलेगा। इनमें से पहली बातमें हिस्सा बँटानेका तो निश्चय ही उन्हें पूरा अवसर मिलेगा, दूसरी बातमें उनका सहयोग इस बातपर निर्भर करेगा कि वे समृद्धि किसे मानते हैं और किसे नहीं; और तीसरी बात तो एक मृग-तृष्णा है जो उसके पीछे दौड़नेपर कदापि नहीं मिलती; परन्तु कर्त्तव्यपरायण रहनेसे सुलभ हो जाती है। श्री पत्तरने भारतकी प्राचीन संस्कृतिके प्रति अभिमानका भाव प्रकट करके उचित ही किया है। यदि वे अपने मनमें यह भाव बनाये रखेंगे तो अच्छा होगा । यद्यपि हम विद्योपार्जनमें तेजस्विताका मूल्य कम नहीं आँकते, तथापि हमें इस बातका अंदेशा है कि हमारे जो नवयुवक पूर्णतया पश्चिमी प्रणालीसे शिक्षित होते हैं, वे कहीं अपनी राष्ट्रीयता, धर्म और मातृभाषाकी, जो साहित्य और संस्कृतिका निधान है, अवहेलना न करने लगें । हम अपने युवक मित्रका हार्दिक स्वागत करते हैं और आशा करते हैं कि उनका अपने जन्म-स्थानमें पुनरागमन उनके सम्पर्क में आनेवाले लोगों, समस्त भारतीय समाज और स्वयं उनके लिए वरदान सिद्ध होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, १६-३-१९१२
 
  1. गांधीजी जब सन् १९०६ में साम्राज्य सरकारके पास भेजे गये शिष्टमण्डलके सदस्यके रूपमें इंग्लैंड में थे तो उन्होंने पतरके शिक्षणमें बड़ी दिलचस्पी दिखाई थी; देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २६-२७, १११, १९२, २५० और २६५-६६ ।