म्यूरिसनके सामने आनेवाली कठिनाइयोंपर हम उनके साथ सहानुभूति प्रकट करते हैं। परन्तु हमारी धारणा तो यह है कि जो कुछेक बातें डॉक्टर साहबकी निगाह में आईं उन्होंने उन्हें अनजाने हो तूल दे दिया । हमें यह कहनेकी इजाजत दी जाये कि जैसा कष्ट उन्हें भारतीय रोगियोंसे पहुंचता है वैसा अन्य रोगियोंसे भी पहुँचता है । डॉ॰ म्यूरिसनसे हमारा यह कहना है कि सारी जातिपर झूठ बोलनेका आरोप मढ़नेसे उनका काम अधिक सुगम नहीं हो जाता। इस कठिनाईका एकमात्र हल यह है कि जो रोगी उनके विभागको चकमा देते हैं उनके साथ शिष्टता परन्तु दृढ़ताका व्यवहार किया जाये । यदि चेचकके कुछ भारतीय रोगियोंने अपने रोगको छिपाया तो अन्य भारतीयोंने रोगके निवारणमें उनके विभागकी सहायता भी तो की। इस बातपर हमसे बढ़कर खेद अन्य किसीको नहीं हो सकता कि भारतीय किसी भी रोगसे आक्रान्त हों, अथवा किसी संक्रामक रोगको भय या अपने अज्ञानके कारण छिपानेका यत्न करें । परन्तु भारतीयोंपर झूठ बोलने-जैसे गम्भीर आरोपकी पुष्टि केवल उन दुःखद अनुभवोंके आधारपर नहीं की जा सकती है जिनका डॉ० म्यूरिसनने जिक्र किया है।
परन्तु डॉ० म्यूरिसनकी स्पष्टवादिता और भारतीय तथा अन्य लोगोंकी समान रूपसे सेवा करनेकी उनकी प्रत्यक्ष इच्छाके लिए भारतीय समाजको उनका कृतज्ञ होना ही चाहिए। हममें से जो व्यक्ति जिम्मेदार होनेका दावा करते हों उनका कर्त्तव्य है कि वे इस बातका ध्यान रखें कि नगरको रोग तथा ऐसे लापरवाह या डरपोक लोगोंके भयसे, जो छूतछातकी बीमारीकी उपेक्षा या दुराव करते हैं, मुक्त रखने में डॉ० म्यूरिसनको पूरी सहायता मिलती रहे। डॉ० म्यूरिसनके झूठ बोलने के
सामान्य आरोपका प्रतिवाद करने में समर्थ होना ही सन्तोषके लिए काफी नहीं है; वास्तविक सन्तोष तो हमें तब होना चाहिए जब हम ऐसा कोई आरोप लगाये जा सकनेके छोटेसे-छोटे कारणका भी अन्त कर देनेका प्रयत्न करते हों ।
[ अंग्रेजीसे ] इंडियन ओपिनियन, २०-७-१९१२
डॉ० म्यूरिसनने डर्बनके भारतीयोंपर झूठे व्यवहारका आरोप लगाया था । हमने उनसे उसका स्पष्टीकरण माँगा । उन्होंने जो जवाब दिया है वह सोचने-समझने लायक है। उनके इस जवाब से सारे समाजपर झूठे व्यवहारका आरोप सिद्ध नहीं होता। लेकिन हम अपने पक्ष में इतना कहकर चुप नहीं बैठे रह सकते । डॉ० म्यूरि-सनने जो उदाहरण दिये हैं वे तो हमें स्वीकार करने ही चाहिए। कुछ भारतीयों में [ संक्रामक ] वीमारियोंको छिपाने और सरकारी अधिकारियोंको झूठे जवाब देनेकी
आदत है ही । यह आदत जानी चाहिए। मनुष्य अक्सर भयके कारण झूठ बोलता है । भय अज्ञानका परिणाम है। इसलिए यदि अज्ञान दूर हो, तो भय दूर हो जाये और भय दूर हो जाये तो झूठ बोलना भी खत्म हो जाये । उदाहरणार्थ, • हमें ऐसा