पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको

अन्तिम प्रति[१]

बिटेनसिंगल [स्ट्रीट]
केप टाउन
अप्रैल ७, १९११

प्रिय श्री लेन,

बातचीतके[२] अनुसार, मैं ट्रान्सवालके एशियाई संघर्षको समाप्त करनेके उद्देश्यसे दिये गये अपने सुझाव लिखकर भेज रहा हूँ।

जनरल स्मट्सने वर्तमान विधेयकमें धारा २७ के बाद जोड़नेके लिए जो नई धारा रखी है उसमें इस प्रकार संशोधन कर दिया जाये :

ट्रान्सवालके १९०८ के१२. पत्र: ई० एफ० सी० लेनको कानून ३६ और ऑरेंज फ्री स्टेटके संविधानके अध्याय

३३ में इसके विरुद्ध कोई विधान हो तो भी, जिस व्यक्तिको इस अधिनियमके खण्ड चारके अनुच्छेद (क) में बताई गई शतें पूराकर लेनेपर संघमें प्रवेशकी अनुमति दी गई है, उसपर ट्रान्सवालके उक्त कानूनकी धारा और उक्त अध्याय ३३ की १ से ६ तक की धाराएँ लागू नहीं मानी जायेगी।

(रेखांकित शब्द नये जोड़े गये हैं और मेरे सुझाये हुए हैं।)

यदि ऐसा संशोधन कर दिया जाये और यदि वर्तमान अधिकारों, विशेषत: वैध अधिवासियों और प्रवासियोंकी स्त्रियों और बच्चोंके अधिकारोंकी रक्षामें सन्देह न रहे तो विधेयक अनाक्रामक प्रतिरोधियोंको स्वीकार्य होगा। केप और नेटालके भारतीयोंने स्वभावतः जो विशिष्ट आपत्तियां की हैं और मेरा खयाल है, जिनपर बारीकीसे अनुकूल विचार किया जाना चाहिए, उनके सम्बन्धमें मुझे कुछ कहना नहीं है।

वैकल्पिक समाधानके रूपमें मेरा सुझाव निम्नलिखित है:

(१) वर्तमान विधेयक समाप्त कर दिया जाये।

(२) ट्रान्सवालके १९०७ के कानून १५ में[३] संशोधनके लिए एक विधेयक प्रस्तुत किया जाये और उसके द्वारा:

(क) "जो हिस्सा ट्रान्सवालके अवयस्क वैध निवासियोंके पंजीयनपर लागू
  1. ये दो शब्द गांधीजीक स्वाक्षरोंमें हैं।
  2. देखिए “ पत्र : एल० डब्ल्यू० रिचको", पृष्ठ ७।
  3. ट्रान्सवाल प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम; यह कानून जनवरी, १९०८ में, सन् १९०७के एशियाई पंजीयन अधिनियमको रद किये बिना, लागू किया गया था और १९०८ को सत्याग्रह संघर्ष इसीके विरुद्ध छेदा गया था । इस कानूनके विधेयफ-रूपके लिए देखिए खण्ड ७, परिशिष्ट ३ और जिस रूपमें यह कानून पास किया गया उसके लिए देखिए, खण्ड ८, परिशिष्ट १ ।