पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय


होता है, उसे छोड़कर" ट्रान्सवालका १९०७ का कानून २[१] रद कर दिया जाये। (उद्धृत शब्द वर्तमान विधेयककी प्रथम अनुसूचीसे लिए गये हैं। इस अपवादका अर्थ मैने यह समझा है कि पंजीकृत एशियाइयोंके अवयस्क बच्चे, चाहे वे कहीं हों, ट्रान्सवालमें प्रवेशके लिए स्वतन्त्र होंगे और १६ वर्षकी आयु होनेपर पंजीकृत किये जायेंगे एवं इसका उन्हें अधिकार होगा।)

(ख) यदि आवश्यक हो तो परीक्षाको अधिक कड़ा बनानेके उद्देश्यसे १९०७ के कानून १५ की शिक्षा सम्बन्धी धारा हटाई जा सकती है और उसके साथ वर्तमान विधेयककी धारा ४ को उपधारा (क) रखी जा सकती है।
(ग) १९०७ के कानून १५ के खण्ड २ की उपधारा ४ रद कर दी जाये।
(घ) जनरल स्मट्सकी नई धारा २६ उचित परिवर्तनके साथ १९०७

के कानून १५ में जोड़ दी जाये; अलबत्ता मेरे द्वारा सुझाये गये परिवर्धनके बिना यह परिवर्तन वर्तमान विधेयकके लिए आवश्यक है, वैकल्पिक समाधानके लिए नहीं।

मेरी सम्मतिमें वैकल्पिक समाधान सबसे सीधा [विधान] है; इसमें फ्री स्टेटका कोई प्रश्न नहीं उठता और जनरल स्मट्स द्वारा इसके मान लिए जानेसे केवल अना- क्रामक प्रतिरोध ही बन्द नहीं होगा, बल्कि मुझे निश्चय है कि उसे भारतीय समाज पूरी तरह अंगीकार कर लेगा।

किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि भारतीय समाजने अन्य अनेक मामलोंमें अपनी स्थिति सुधारनेकी कार्रवाई करनेका अपना अधिकार छोड़ दिया है।

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रति (एस० एन० ५४३४) की फोटो-नकल और १५-४-१९११ के 'इंडियन ओपिनियन' से।

१.

  1. यून्सबाल एशियाई पंजीपन अधिनियम; यह कानून २२ मार्च, १९०७को ट्रान्सवालके स्वशासित उपनिवेश द्वारा पास किया गया और मई ७, १९०७ को इसपर शाही स्वीकृति प्राप्त हुई। यह कानून लाभग एशियाई कानून-संशोधन अध्यादेशके समान ही था, जिसे १९०६ के गांधी-अली शिष्टमण्डलकी आपत्तियोंके फलस्वरूप शाही सरकारने नामंजूर कर दिया था । इस अध्यादेश और कानून दोनोंमें, अन्य बातोंके अलावा, एशियाश्योंके अनिवार्य पंजीयन और उनके प्रमाणपत्रोंपर उनके अंगुलियों के निशान लेनेकी व्यवस्था की गई थी। पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिए कि गांधीजीने बोलते अथवा लिखते समय आम तौरपर यह स्पष्ट नहीं किया है कि ट्रान्सवाल एशियाई कानून-संशोधन अध्यादेश, पशियाई पंजीयन कानून (१९०७ का कानून ४) और पशियाई पंजीयन संशोधन अधिनियम (१९०८ का कानून ३६)- इन तीन कानूनों में से उनका तात्पर्य कब किस कानूनसे रहा है । हाँ, कोई अर्जी देते समय अथवा न्यायालयों में वहस करते वक्त उन्होंने इसको स्पष्ट करनेका ध्यान अवश्य रखा।