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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बात नहीं; क्योंकि सार्वजनिक काम करनेवाले लोगोंके सम्बन्धमें ऐसा हमेशासे होता आया है और होता रहेगा।

रायटर के तारोंमें भाषणोंका सार ठीक ही दिया जाता है, यह बात नहीं। फिर भी हमें उन तारोंका [यथाशक्ति ठीक] अर्थ करके यह देखना चाहिए कि बाँकीपुरमें क्या-कुछ हुआ होगा। रायटरके तारोंको समझनेके लिए हमें पहले श्री गोखलेने यहाँ जो कुछ कहा था, उसका अर्थ समझ लेना चाहिए। इस देशभक्तने यहाँ कहा था कि यदि प्रवासी कानूनमें सैद्धान्तिक समानता स्वीकार करके हमारी जरूरत पूरी करने लायक भारतीयोंको आने दिया जाये तो दूसरे भारतीयोंके प्रवेशपर प्रतिबन्धमें भारतको कोई आपत्ति न होगी। इसके अतिरिक्त उन्होंने यहाँ यह भी कहा था कि हम फिलहाल राजनीतिक अधिकार नहीं माँगते। श्री गोखलेने अपने भारतीय आलोचकोंको उत्तर देते हुए कहा कि भारत [दक्षिण आफ्रिका में] प्रवासके मामलेमें कोई अधिकतम सीमा नहीं निर्धारित करता। उन्होंने मताधिकारके सम्बन्धमें कहा कि मैंने दक्षिण आफ्रिकामें रहनेवाले भारतीयोंके लिए गोरोंके बराबरके हकोंकी माँग की है; इसमें मताधिकार भी आ जाता है। यदि हम विचारपूर्वक देखें तो यह बात उनके दक्षिण आफ्रिकाके भाषणोंके विरुद्ध नहीं लगेगी। श्री गोखलेपर यह आरोप लगाया गया जान पड़ता है कि उन्होंने भारतके हाथ बाँध दिये हैं और यहाँ और अधिक भारतीय न आने देनेकी जिम्मेदारी भारतपर ही डाल दी है। यह आरोप ठीक नहीं है; क्योंकि उन्होंने तो इतना ही माना है कि यदि संघ-सरकार और अधिक भारतीयोंको न आने देगी तो भारतको उसपर आपत्ति न होगी। उनके इस कथनमें और इसमें कि स्वयं भारत ही प्रवास बन्द कर देगा, बहुत अन्तर है। यही बात मताधिकार के सम्बन्धमें है। वे कहते हैं कि हम यह माँग अभी नहीं करते। पर इसमें, और भारत मताधिकार नहीं माँगता इसमें बहुत बड़ा अन्तर और विरोध है। पिछली बात मंजूर कर लेनेपर भारत हमपर लगी निर्योग्यताओंके लिए जवाबदेह हो जाता है। श्री गोखलेने आगे बताया कि उन्होंने एक भी हक छोड़नेकी बात मंजूर नहीं की है। यह कहते हुए कि उन्होंने हमारी माँगोंके अनुसार ही माँगें की हैं, श्री गोखलेने बता दिया कि उन्होंने कोई नई माँग तो नहीं की है, किन्तु साथ ही हम जो माँगते आये हैं उसमें से कुछ छोड़ा भी नहीं है। इस तरह गलतफहमी बम्बईके आलोचकोंकी ही साबित हुई है। क्योंकि उन्होंने आजतक हमारी माँगोंकी कहने लायक आलोचना नहीं की।

[गुजराती से]

इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९१३