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३१४. डेकके यात्री


डेलागोआ-बेका प्रवासी अधिकारी कैसा बरताव करता है, इस सम्बन्धमें में अपना अनुभव बता चुका हूँ।[१] ऐसे बरताव के लिए कुछ हद तक डेकके यात्री भी जिम्मेदार हैं। डेकके यात्रियोंने अपने तौर-तरीकोंसे अपनी साख ऐसी बिगाड़ ली है है कि [उसकी आड़में] भारतीयोंपर कोई भी जुल्म चलता रह सकता है। अपनी कुछ दिनोंकी डेककी यात्राके अनुभवके आधारपर मेरा यह कथन एकदम अनुचित नहीं है।

डेकके यात्रियोंमें गन्दगीकी कोई सीमा नहीं जान पड़ती। जहाजमें नहाने-धोनेकी व्यवस्था होनेपर भी ज्यादातर यात्री तो शायद ही कभी नहाते हैं। वे समझते हैं कि समुद्रके खारे पानीसे स्नान किया ही नहीं जा सकता। यह सिर्फ वहम है, फिर भी वे इस वहमसे चिपटे हुए हैं। कुछ लोग आलस्यवश सप्ताह में केवल एक बार ही नहाते हैं। डेकपर के बहुत-से भारतीय कपड़े बदलते ही नहीं और बहुत गन्दे लगते हैं। बहुत-से जहाँ बैठे होते हैं वहीं थूक देते हैं। उन्हें एक-दूसरेकी सुविधाका ध्यान भी नहीं रहता। एक व्यक्तिने जहाँ श्री कैलेनबैक बैठे थे बिलकुल वहीं उनके सिरपर से थूका। डेक कूड़ा-करकट और थूकसे इतना भरा होता है कि उसपर नंगे पैर चलनेमें जी घबराता है और पैर फिसल जानेका डर भी लगता है। अच्छी जगह लेनेके लिए लोग एक-दूसरेसे तकरार भी करते हैं। वे पाखानोंका उपयोग इतनी लापरवाहीसे करते हैं कि जिसे सफाईका थोड़ा भी ध्यान है उसे घृणा आये बिना नहीं रहती। हम इस तरह रहें और जहाजके अधिकारी हमारा तिरस्कार करें तो इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है; और होता भी बिलकुल यही है।

इसके अतिरिक्त ऐसे भारतीय भी डेक यात्रीके रूपमें यात्रा करते हैं जिन्हें यह शोभा नहीं देता, मेरी समझमें यदि सम्पन्न और प्रसिद्ध व्यापारी भी केवल पैसेके मोहके कारण डेकपर यात्रा करें तो उनके प्रतिस्पर्धी गोरे व्यापारियोंका उनके विरुद्ध हो जाना और उन्हें सम्मान न देना स्वाभाविक है। मान लीजिए कि स्टैंडर्ड बैंकका मैनेजर, जिसका वार्षिक वेतन १,००० पौंड या अधिक है, जहाजके पहले दर्जे में सफर कर रहा है। वह अपने एक भारतीय आसामीको डेकपर गन्दी हालत में [यात्रा करते] देखता है। उसके पाँच-सात हजार पौंड सदा उसके बैंकमें जमा रहते हैं अथवा उसे बैंकसे २५,००० पौंड तक उधार मिल सकते हैं। वह हर बड़े दिनपर मैनेजरको अपने डेकके किरायेसे दूने मूल्यका सामान भेंटमें देता है। इस प्रकार यह यात्री स्पष्टतः मैनेजरसे अधिक समृद्ध है; किन्तु तब भी वह डेकपर यात्रा करता है। बैंक मैनेजरके मनमें अपने आसामीको इस स्थितिमें देखकर क्या खयाल आयेगा? वह हमें और हमारी सम्पत्तिको धिक्कारे बिना कैसे रहेगा?

  1. देखिए "श्री गांधी नजर कैद", पृष्ठ ३५६-५९।