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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मैं यह नहीं चाहता कि हम इस बारेमें गोरोंकी नकल करें। परन्तु मैं यह अवश्य कहूँगा कि यदि हम व्यापार आदिमें गोरोंसे मुकाबला करते हैं, उनके समान हक माँगते हैं और हमारे पास पैसा है तो जिन बातोंमें हमारी अन्तरात्माको ठेस न पहुँचे उन बातोंमें हमें गोरोंको अपनी ओर अंगुली उठानेका अवसर न देना चाहिए। पैसेवाले आदमीका फर्ज है कि वह पहले अपने सम्मानके लिए और भारतके सम्मानके लिए दूसरे दर्जे में यात्रा करे और सफाईका पूरा ध्यान रखे। हम बहुत-सी बातोंमें अपने सम्मानको भुला देते हैं।

गरीब यात्री डेकपर जायें; परन्तु जिन बातोंमें सम्भव हो उनमें किसीके लिए कुछ कहनेकी गुंजाइश न दें। हम अपनी पैदा की हुई अड़चनें दूर कर दें तो हमें सुख मिलेगा और तब यात्रामें सुविधाएँ देनेकी जिम्मेदारी अधिकारीकी होगी और वह उसे निभानी ही होगी।

यदि हमने आरम्भ से ही ऐसा किया होता तो आज डेकके यात्रियोंकी जो दुर्गति होती है वह कभी न होती। सफाई रखना और साफ कपड़े पहनना कोई बड़ी बात नहीं है। यह मामूली-सी सावधानीका काम है। परन्तु मेरे इस कथनका कोई यह अर्थ न निकाले कि हमें जहाजोंके मेट वगैरह जो कष्ट देते हैं उसका विरोध न करना चाहिए या वे जो-कुछ करते हैं वह उचित है। जिस जहाजमें मैं डेक-यात्रीके रूपमें आया मैंने तो उसमें प्रत्येक शिकायतको दूर करवानेका प्रयत्न किया है। और इन शिकायतोंको दूर कराना ऐसे प्रत्येक यात्रीका कर्त्तव्य है जिसमें अंग्रेजीका ज्ञान आदि होनेसे ऐसा करनेकी शक्ति है। पुरनिया नामके एक यात्रीने एक विवरण भेजा है। यदि यह विवरण सच्चा हो तो इसके विरोधमें कार्रवाई करना अत्यन्त आवश्यक है। मेरे कहनेका मतलब यही है कि हम अपनी ओरसे गलती न करें। हम निर्दोष रहें तो हम अपनी शिकायतें अधिक अच्छी तरह दूर करा सकते हैं। और हम चाहे जैसे हों, किन्तु नहानेकी असुविधा या व्यवस्थाका अभाव, अपर्याप्त या बुरी और खुली टट्टियाँ, ठंड या गर्मी से बचावके अल्प साधन, रसोई करनेकी असुविधा, स्त्रियोंके लिए विशेष स्थान आदिका अभाव और यात्रियोंको ढोरोंकी तरह एक जगह से दूसरी जगह हटाते रहना आदि जो खामियाँ हैं, उनका बचाव या जवाब हमारी गन्दी हालत या दूसरी अपूर्णता नहीं हो सकती। इस मामलेमें जहाजोंके एजेंटोंको कदम उठाने चाहिए और यात्रियोंकी शिकायतें दूर करनी चाहिए। मैंने अपने अनुभवकी चर्चा इसी अभिप्रायसे की कि हम मनुष्य और भारतीयोंके रूपमें हर तरहसे अपने कर्त्तव्यका पालन करके भारतकी प्रतिष्ठाको कायम रखें।

मोहनदास करमचन्द गांधी

फीनिक्स

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९१३