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३१७. "अनुग्रह" का एक कार्य


ट्रान्सवाल में प्रवेशाधिकारका दावा करनेवाले, दक्षिण आफ्रिकामें उत्पन्न, दो तरुण भारतीयोंके[१] साथ मुख्य प्रवासी अधिकारी द्वारा किये गये बरतावके बारेमें श्री पोलकने गृह मन्त्रीको जो पत्र भेजा था, उसे हम पिछले सप्ताह छाप चुके हैं। इस पत्र में सारा मामला इतनी अच्छी तरह पेश किया गया है कि और समझानेकी जरूरत नहीं रह जाती! उससे बहुत ही स्पष्ट रूपसे प्रकट हो जाता है कि सम्बन्धित अधिकारीका व्यवहार कितना अन्यायपूर्ण था। उसी समय श्री पोलकने 'नेटाल मर्क्युरी' को भी एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने न केवल इन दो तरुण भारतीयोंके, बल्कि श्री गज्जरके मामलेपर[२] भी प्रकाश डाला था। हमारे पाठक श्री गज्जरके मामलेसे

  1. दिसम्बर २२, १९१२ को भवानी दयाल तथा देवी दयाल नामके दो भारतीय तरुण, जो ट्रान्सवालके अधिवासी एक भारतीयके पुत्र थे और जिनका जन्म भी वहीं हुआ था, ट्रान्सवाल लौटते हुए डर्बन पहुँचे। दोनोंकी पत्नियाँ भी साथ थीं और उनमें से एकके बच्चा भी था। यद्यपि दोनोंका दावा था कि ३१ मई, १९०२ को वे ट्रान्सवालमें थे और उनमें से एक शैक्षणिक परीक्षा भी पास कर सकता था, किन्तु प्रवासी-अधिकारी कजिन्सने उन्हें निकासी अनुमतिपत्र (विजिटर्स परमिट) देनेसे इनकार कर दिया। पोलकने उनकी शिनाख्ती करने तथा ३१ मई, १९०२ को उनके ट्रान्सवालमें होनेके सम्बन्ध में वहाँके एक प्रतिष्ठित भारतीयका हलफनामा भी प्राप्त किया, किन्तु कज़िन्सने एशियाई-पंजीयकके निर्देशके बिना उनके दावेपर विचार करने से इनकार कर दिया। उसने पंजीयकके नाम भी कुछ लिखनेसे इनकार कर दिया। आखिर पोलकने दो वकीलोंकी सहायतासे मामलेको न्यायालय में पेश किया और तब बड़ी परेशानीके बाद प्रार्थियोंको कजिन्स से निकासी पास प्राप्त हुआ; किन्तु उसने पंजीयनके लिए उनके प्रार्थनापत्रोंको तब भी स्वीकार नहीं किया। इसके बाद पोलकने सारे मामलेका विवरण देते हुए गृह मन्त्रीको पत्र लिखा और उनसे अनुरोध किया कि प्रवासी कानूनके प्रशासनमें कुछ अधिक नर्मीका रुख अपनाया जाये। इंडियन ओपिनियन, ४-१-१९१३।
  2. केप-स्थित समरसेट ईस्टके गज्जर नामक एक भारतीय व्यापारीकी पत्नी भारतसे उनके पास आ रही थीं। श्री गज्जर उनकी अगवानी करने डर्बन गये थे। वहाँ जाते समय उन्होंने स्थानीय मजिस्ट्रेटसे नेटाल के लिए एक निकासी अनुमतिपत्र देनेको कहा, किन्तु मजिस्ट्रेटने अज्ञानवश उसे अनावश्यक बताया। परन्तु उन्हें एक प्रमाणपत्र दे दिया गया था। उनके डर्बन आनेपर कज़िन्सने उनको तलब किया और पूछताछ करनेपर पाया कि उनके पास न तो नेटालके लिए निकासी-पास है और न केपसे अनुपस्थित रहनेका अस्थायी अनुमतिपत्र। उसने उनके नाम नेटालके लिए एक निकासी-पास तो जारी कर दिया, किन्तु श्री गज्जरको मन्त्रीसे निर्देश प्राप्त होने तक नेटालमें ही रुके रहनेका आदेश दिया और उनकी पत्नीको भी जहाजपर से नहीं उतरने दिया। उसका तर्क यह था कि चूँकि श्री गज्जरके पास न नेटालके लिए निकासी-पास है और न केपके लिए वहाँसे अनुपस्थित रहनेका अस्थायी अनुमतिपत्र, इसलिए वे "निषिद्ध प्रवासी" हैं, और इस कारण उनकी पत्नीको उपनिवेशमें आनेका अधिकार नहीं है। किन्तु उसने उन्हें "एक अनुग्रहके कार्य" के रूपमें घर लौटने की अनुमति दे दी। इस बातकी आलोचना करते हुए श्री पोलकने नेटाल मर्क्युरीको एक पत्र लिखा था। इंडियन ओपिनियन, ११-१-१९१३।