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"अनुग्रह" का एक कार्य

भी परिचित हैं। हमारे सहयोगीने इन मामलोंपर एक बड़ा जोरदार सम्पादकीय[१] अंकमें प्रकाशित कर रहे हैं। साथ ही हम श्री पोलकके रहे हैं जो श्री गज्जरके मामलेसे सम्बद्ध है।

लिखा है, जिसे हम इस पत्रका वह अंश भी छाप श्री पोलकके पत्रका सबसे दुःखदायी अंश वह है जिसमें वे कहते हैं कि श्री गज्जरको "अनुग्रह" के रूपमें केप लौटनेकी अनुमति दे दी गई है। केप प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत अन्य अधिक कठोर मामले सामने आ चुके हैं; किन्तु जिस खण्ड में प्रान्त से बाहर जानेवाले भारतीयको अनुपस्थितिके लिए एक खास तरहका अनुमतिपत्र लेनेका विधान है, उसमें शायद ही किसी मामलेमें स्पष्ट इतनी अधिक क्रूरता बरती गई हो। यद्यपि श्री गज्जरके पास अपने नगरके मुख्य कांस्टेबलके हाथकी शिनाख्त लिखित थी, फिर भी यदि उनके साथ यह मूल्यवान "अनुग्रहका कार्य" न किया गया होता तो वे केप प्रान्तके लिए निषिद्ध प्रवासी हो जाते। इस कानूनके अन्तर्गत यदि कोई एक केपनिवासी भारतीय, संघके किसी दूसरे प्रान्तसे अनुमतिपत्र लेकर वहाँ जाता है और वह समरसेट ईस्टके मजिस्ट्रेटकी तरह केप प्रवासी कानूनकी शर्तोंको ठीक-ठीक नहीं जानता तो उसे अपने प्रान्तमें लौटनेसे रोका जा सकता है। श्री पोलकके निरन्तर प्रयत्नके परिणामस्वरूप श्री गज्जरके मामलेमें सरकारको न्याय देनेके लिए मजबूर होना पड़ा, किन्तु केपवासी भारतीयोंको तबतक चैन नहीं लेना चाहिए जबतक उस खण्ड में परिवर्तन नहीं कर दिया जाता, और सरकारसे यह वादा नहीं करा लिया जाता कि परिवर्तन न होने तक धारापर सख्ती के साथ अमल नहीं किया जायेगा।

जहाँतक सम्बन्धित अधिकारीके[२] कार्यका सवाल है, जनताको यह जानकर शायद प्रसन्नता होगी कि उसने अब इस पदकी जिम्मेदारी श्री हैरी स्मिथको सौंप दी है। श्री हरी स्मिथ नेटालकी हद तक एक पुराने अनुभवी अधिकारी हैं, जिन्हें सम्बन्धित लोगोंके बारेमें आवश्यक कानूनी जानकारी प्राप्त है। किन्तु संघ-सरकारके अधीन श्री हैरी स्मिय अपने विभागको किस प्रकार चलाते हैं, इसे भारतीय समाज काफी सतर्क होकर देखेगा। श्री कजिन्स द्वारा नेटालके प्रवासी कानूनका जैसा अमल किया गया, उसकी कटु आलोचना[३] करनेका दुःखद कार्य हमें करना पड़ा है; किन्तु हमें बराबर ऐसा लगता रहा है कि अब जब कि वे संघ-सरकारके अधिकारी हैं और हो सकता है, गृह-विभागके आदेशों के अनुसार उन्हें अपनी इच्छाके विरुद्ध भी काम करना पड़ रहा हो, इस तथ्य की उपेक्षा करके हम उनके साथ अन्याय तो नहीं करते रहे। लेकिन कहीं-कहीं, जैसे श्री गज्जर के मामलेमें, हम उनकी कार्रवाईकी ऐसी कोई उदार व्याख्या करनेमें असमर्थ रहे हैं। गृह-विभागके आदेश चाहे कुछ भी हों, दयालु प्रवासी-

  1. इसमें नेटाल मर्क्युरीने कज़िन्सकी तीव्र भर्त्सना की थी। उसने लिखा था कि स्पष्ट ही उनका व्यवहार ऐसा है, मानो लोगोंको अधिकसे-अधिक असुविधा देनेके लिए ही उन्हें नियुक्त किया गया हो। पत्रने कजिन्सको इस पद के लिए सर्वथा अनुपयुक्त व्यक्ति घोषित किया था। इंडियन ओपिनियन, ११-१-१९१३।
  2. कजिन्स।
  3. देखिए "नया मुल्ला", पृष्ठ २७४-७६ और "नये मुल्लाके बारेमें कुछ और", पृष्ठ २७८-७९।