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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अधिकारियोंके लिए उनके अमल में असहाय स्त्री-पुरुषोंके प्रति दयाभाव रखनेकी गुंजाइश बराबर बनी रहेगी। और हमें विश्वास है कि श्री हैरी स्मिथ भारतीय समाजके साथ अपने व्यवहार में दयालुतासे काम लेंगे, जैसा कि वे पहले अकसर करते रहे हैं।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, ११-१-१९१३

३१८. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-२]

हमारी कुछ ऐसी आदत है कि जरा-सी तकलीफ हुई कि हम डॉक्टर वैद्य या हकीम यहाँ दौड़ जाते हैं। यदि ऐसा नहीं किया, तो हमारा हज्जाम या पड़ौसी जिस-किसी दवाको लेनेकी सलाह देता है, हम वही ले लेते हैं। हमारी मान्यता ही ऐसी बन गई है कि बिना दवाके दर्द नहीं जायेगा। यह एक जबरदस्त भ्रम है और इस भ्रमके कारण जितने लोग दुःखी हुए हैं और हो रहे हैं, उतने किसी दूसरे कारणसे न होते हैं और न कभी होंगे हीं। अतः दर्द या रोग क्या चीज है, यदि हम इतना साफ समझ पायें तो थोड़ा-बहुत सन्तुलन रख सकते हैं। दर्दका शब्दार्थ होता है दुःख। रोगका अर्थ भी यही होता है। दर्दका इलाज करना तो ठीक है, किन्तु दर्दको मिटानेके लिए दवा लेनी चाहिए, यह निरर्थक बात है। इतना ही नहीं, इससे अनेक बार हानि ही होती है। मेरे घरमें कचरा हो गया हो और मैं उसे केवल ढँक दूँ तो इसका जो परिणाम होगा वही परिणाम दवाका समझिए। यदि मैं कचरेको ढँक दूँ, तो वह सड़ उठेगा और मुझे हानि पहुँचायेगा। फिर, ढक्कन ही सड़ जाये, तो यह ढँकना एक अतिरिक्त कचरा हो गया। अर्थात् जो कचरा पहले था वह, और यह नया कचरा, इन दोनोंको मुझे साफ करना पड़ेगा। ठीक यही दशा दवा लेनेवालेकी होती है। किन्तु यदि ढाँकनेके बजाय यह कचरा साफ कर दिया जाये तो घर फिर साफ और स्वच्छ हो जायेगा। दर्द या दुःख पैदा करके प्रकृति हमें सूचित करती है कि हमारे शरीरमें कचरा है। प्रकृतिने तो हमारे शरीरमें ही कचरेको साफ करनेके मार्ग बना रखे है और जब कोई रोग पैदा हो जाये, तब हमें समझ लेना चाहिए कि हमारे शरीरमें जो कचरा था उसे अब प्रकृतिने साफ करना शुरू किया है। मेरे घरमें जमा हुए कचरेको कोई मनुष्य साफ करनेके लिए आये, तो मैं उसका उपकार मानूँगा। वह मनुष्य इस कचरेको साफ करेगा, तबतक मुझे थोड़ी असुविधा अवश्य होगी। लेकिन मैं चुप रहूँगा। इसी प्रकार जबतक प्रकृति मेरे शरीर रूपी घरका कचरा साफ कर रही हो, तबतक मैं यदि खामोश रहूँ, तो मेरा शरीर ठीक हो जाये और मैं नीरोग या दुःखसे मुक्त हो जाऊँ। मुझे सर्दी हो गई है, इसलिए मुझे झटपट कुछ दवा लेनेकी - सोंठ आदि खा लेने की - फिक्र नहीं करनी चाहिए। मैं जानता हूँ कि मेरे शरीरके अमुक भागमें कचरा इकट्ठा हो गया है, उसे निकालनेके लिए कुदरत आ पहुँची है और मुझे उसे मार्ग देना चाहिए, जिससे कमसे कम समय में मैं निर्मल हो जाऊँ। किन्तु यदि मैं प्रकृतिको रोकूं तो उसका काम दुगुना हो जायेगा;