तो वह सन्तति उनसे बढ़-चढ़कर होनी ही चाहिए। यदि यह बात सत्य न हो, तो दुनिया प्रगति करती है, ऐसा माननेवालेको अपने वचन वापस ले लेने होंगे। पूर्ण रूपसे नीरोगी मनुष्यको मोतका डर होता ही नहीं। हम सभी मौतसे डरते हैं, इससे जाहिर होता है कि हम लोग तन्दुरुस्त नहीं हैं। मौत तो हमारे लिए एक बड़ा परिवर्तन है और सृष्टिके नियमानुसार यह परिवर्तन अच्छा ही होना चाहिए। उत्कृष्ट नीरोगताको प्राप्त करनेके लिए प्रयत्नशील होना हमारा कर्त्तव्य है । हम सब आगे इस बातका विचार करेंगे कि ऐसी उत्कृष्ट नीरोगता कैसे प्राप्त की जाये और उसे कैसे कायम रखा जाये।
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-१-१९१३
३२७. काफी देरसे
हम अन्यत्र 'टाइम्स ऑफ़ नेटाल' के एक ताजे अंकमें छपी इस आशय की खबर प्रकाशित कर रहे हैं कि जिन गिरमिटिया भारतीयोंकी गिरमिटकी अवधि समाप्त हो चुकी है, संघ-सरकारने उनसे तथा उनके बीवी-बच्चोंसे प्रतिवर्ष लिये जानेवाले तीन पौंडी करको समाप्त कर देनेका निश्चय किया है। यदि यह खबर सही है तो काफी देरसे मिलनेपर भी इस राहतका स्वागत है। अब वह समय आ गया है, जब दक्षिण आफ्रिकाके लोगोंको इस रक्त-रंजित धनका लालच छोड़ देना चाहिए। हम बहुत सोच-समझकर इसे रक्त-रंजित धन कह रहे हैं। जो कर एक गरीब आदमी, उसकी पत्नी और उसके बच्चोंसे स्पष्टतः इस उद्देश्यसे वसूला जाये कि जिस देशकी सेवा करनेके लिए उसने तथा उसके परिवारने पाँच वर्ष तक गुलामीकी जिन्दगी बिताई, उसी देशसे उसे और उसके परिवारको निकाल दिया जाये या उसे फिर एक निश्चित अवधिके लिए गुलामीके बन्धनमें बँधनेपर मजबूर कर दिया जाये उस करके स्वरूपका सही अन्दाज देनेवाला और कोई शब्द नहीं है। यह कर जिस दिन सचमुच समाप्त कर दिया जायेगा वह दिन समस्त दक्षिण आफ्रिकी भारतीय समाजके लिए खुशी मनानेका दिन होगा; क्योंकि उससे हमारे हजारों मूक देशवासियोंको राहत मिलेगी। यदि यह घृणित कर इस वर्ष उठा लिया जाता है, तो इसका श्रेय श्री गोखलेको होगा।
[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-१-१९१३