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३३२. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-४]

२. हमारा शरीर

अनल, अनिल, जल, गगन, रसा है।
इन पाँचोंसे विश्व बसा है॥

ऊपरकी इन पंक्तियोंमें शरीरका प्रायः सम्पूर्ण वर्णन आ जाता है। इनमें कहा गया है कि पृथ्वी यानी मिट्टी, पानी, आकाश, वायु और तेज, इन पांच तत्वोंको मिलाकर कुदरत और कुदरतके सृष्टाने यह खेल, जिसे हम संसारके नामसे जानते हैं, रचा है। जिस चीजका यह जगत बना है, ठीक उसी वस्तुसे मिट्टीका यह पुतला, जिसे हम अपना शरीर कहते हैं, बना हुआ है। हमारे यहाँ कहावत है, "यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।" अर्थात् "जो देहमें है, वही देशमें है।" यदि हम इस सूत्रको याद रखें, तो हम निश्चित रूपसे यह समझ सकेंगे कि शरीरके निर्वाहके लिए स्वच्छ मिट्टी, स्वच्छ जल, स्वच्छ आकाश, स्वच्छ अग्नि (सूर्य) और स्वच्छ हवा, ये अत्यन्त जरूरी हैं; और इनमें से किसी भी तत्वसे भयभीत होने का कोई कारण नहीं है। सच देखा जाये, तो शरीरमें इनमें से किसी एक भी तत्वके वांछित परिमाणसे कम हो जानेपर ही रोग होता है।

इस शरीर के सम्बन्धमें इतना जान लेनेकी जरूरत है, लेकिन केवल इतना ही जानना हमारे लिए काफी नहीं है।

यह शरीर चमड़ी, हड्डियों, मांस और रुधिरसे बना हुआ है। हड्डियोंका पिंजर शरीरका मुख्य आधार है; हड्डियोंके सहारे ही हम सीधे खड़े हो सकते हैं और चल-फिर सकते हैं। हड्डियाँ ही शरीरके नाजुक अवयवोंका रक्षण करती हैं; जैसे कि खोपड़ी मस्तिष्कका और पसलियाँ हृदय तथा फेफड़ोंका। डॉक्टरोंकी गिनतीके अनुसार हमारे शरीरमें २३८ हड्डियाँ हैं। इन हड्डियोंका बाहरी भाग सख्त है, यह हम सभी देख सकते हैं। किन्तु ऐसी स्थिति भीतरी भागकी नहीं होती। भीतरी भाग नरम और पोला है। एक हड्डी दूसरीके साथ जुड़ी हुई है। जोड़के इस स्थानपर झिल्लियोंका एक आवरण होता है। हड्डियोंका नर्म भाग ही ये झिल्लियाँ हैं।

हमारे दाँत भी हड्डियाँ ही हैं। बचपन में प्रथम दूधके दाँत आते हैं। वे तो सभीके गिर जाते हैं। इसके बाद पक्के दाँत आते हैं, जो फिर [बुढ़ापेमें] गिरते हैं और दुबारा नहीं आते। दूधिया दाँत ६ से ८ महीनेकी अवस्थामें ही निकलने लगते हैं और बालक जब एक-दो वर्षका हो जाता है, तब प्रायः सभी दाँत निकल आते हैं। दाढ़े सबके बाद निकलती हैं।

हम अपनी चमड़ीको टटोलें तो हमें अनेक स्थानोंपर मांसके लोंदोंका अन्दाज लगेगा। ये ही स्नायु कहलाते हैं, जिनके सहारे हमारे ज्ञान-तन्तु कार्य करते हैं। हम अपने हाथोंको बन्द करते हैं और खोलते हैं, जबड़ोंको हिला सकते हैं, आँखें मटका सकते हैं। यह सारा कार्य स्नायुओंके आधारपर ही होता है।