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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


शरीर-सम्बन्धी सम्पूर्ण ज्ञान देना इन प्रकरणोंकी मर्यादाके बाहर है। स्वयं लेखकको इतना ज्ञान है भी नहीं। अतः हमारे लिए जितना जानने लायक है, उतना ही इन प्रकरणों में दिया जायेगा। तो अब ऊपरकी बातें समझ लेनेपर हम शरीरके मुख्य भागोंपर आते हैं। इनमें जठर या पेट सर्वोपरि माना जायेगा। यह जठर एक क्षणको भी यदि आलस्य कर जाये, तो हमारे सारे अंग ढीले पड़ जायेंगे। अपने जठरपर हम जितना बोझ लादते हैं, उतना भार सहन करनेकी शक्ति महा विकराल प्राणियों में भी नहीं होती। जठरका कार्य अन्नको पचाकर शरीरका पोषण करना है। किसी यन्त्रके लिए जैसे इंजिन होता है, उसी प्रकार मनुष्यके लिए जठर है। जठरका यह भाग बाईं ओरकी पसलियोंके अन्दरकी ओर है। इसमें अनेक कार्य होते रहते हैं; भिन्न-भिन्न रस तैयार होते हैं, अन्नमें से सार तत्व खींचा जाता है और बचा हुआ भाग मल-मूत्र आदि बनकर अंतड़ियोंके जरिये बाहर निकल जाता है। इनके ऊपरकी ओर कलेजेका बायाँ भाग है। जठरकी बाईं ओर प्लीहा है। प्लीहा पसलियोंके भीतरी भागमें दाहिने हिस्सेमें है। कलेजेका काम रक्तको शुद्ध करना और पित्त पैदा करना है। पित्त पाचन-क्रियाके उपयोगके लिए है।

पसलियोंके नीचे छातीकी पोलमें दूसरे उपयोगी विभाग हैं। ये हैं हृदय और फेफड़े। दोनों फेफड़ोंके बीचमें बाईं ओरको हृदयकी थैली है। छातीमें बाईं और दाहिनी ओर मिलाकर २४ पसलियाँ हैं। छातीकी धड़कन पाँचवी या छठी पसलीके बीच होती है। हमारे दो फेफड़े हैं - बायाँ और दाहिना। ये श्वासकी नलिकाओं से बने हुए हैं। हवासे भरे रहते हैं और इनमें रक्तका शुद्धीकरण होता है। फेफड़ों में श्वासोच्छ्वासके जरिये हवा पहुँचती है। यह हवा नाकके नथुनोंसे होकर ही पहुँचनी चाहिए। इस प्रकार नथुनोंसे होकर आनेवाली हवा गर्म होकर फेफड़ोंमें पहुँचती है। अनेक मनुष्य इस बातसे अनभिज्ञ होते हैं और वे मुंहके जरिये श्वास लेते हैं और नुकसान उठाते हैं। मुँह तो खाने आदिका काम लेनेके लिए है। अतः हवा हमें केवल नासिका द्वारा ही लेनी चाहिए।

इस प्रकार हम थोड़ेमें शरीरकी रचना देख गये। उसके मुख्य-मुख्य अंगोंका थोड़ा-सा ज्ञान हासिल किया। अब उस रक्तकी जाँच करें, जो इस देहका आधार है। यह रक्त हमारे शरीरका पोषण करता है। इतना ही नहीं, यह हमारी खुराकमें से पोषक तत्वका विभाजन करता है और अनुपयोगी पदार्थोंको - मलमूत्र आदिके जरिए बाहर फेंककर हमारे शरीरका तापमान एक समान बनाये रखता है। यह रक्त शरीरभरमें फैली हुई नलियों - नसों - के द्वारा बहता रहता है। हमारी यह नाड़ी भी रक्तकी गति के आधारपर ही चलती है। जो मनुष्य जवान और तन्दुरुस्त है, उसकी नाड़ी एक मिनटमें लगभग ७५ बार चलती है अर्थात् ७५ बार धड़कती है। बच्चोंकी नाड़ी अधिक वेगसे चलती है और बूढ़े मनुष्योंकी मन्द गति से।

रक्तको शुद्ध रखनेवाला सबसे बड़ा साधन हवा है। सारे शरीरमें घूमकर रक्त फेफड़ोंमें पहुँचते-पहुँचते बेकाम हो जाता है, उसमें जहरीले पदार्थोंका मिश्रण हो जाता है। इस जहरीले पदार्थको अन्दर खींची हुई शुद्ध हवा पकड़ लेती है और रक्तको अपनी प्राण-वायु दे देती है। यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती है। रक्तसे लिये हुए