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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


पाँच बजे उठाता हूँ। प्रेसके कर्मचारी, विद्यार्थी और मैं सबके सब छः बजेसे आठ बजे तक खेतीका काम करते हैं। आठ और साढे आठके बीच प्रेस कर्मचारी तथा विद्यार्थी नाश्ता करते हैं। साढ़े आठ बजे प्रेसके सब लोग फिर वापस खेतमें जाते हैं और वहाँ ११ बजे तक काम करते हैं। मैं लड़कोंको पाठशालामें ले जाता हूँ। वहाँ वे ८-३० बजेसे १०-३० बजे तक किताबी ज्ञान प्राप्त करते हैं, और इसके बाद १०-३० से ११ तक खेतीका काम सीखते हैं।

११ से १२ बजेतक नहाना-खाना चलता है, और १२-३० से ४-३० तक प्रेसका काम। उसमें बड़ी उम्र के लड़के दो घंटे प्रेसका काम सीखते हैं और बादके दो घंटे पाठशाला में पढ़ते-लिखते हैं। मैं दोपहरको पाठशालाकी देखभाल बिलकुल नहीं कर सकता। लगता है, यहाँ काम-धामका सिलसिला ठीक होनेपर यह कर सकूंगा।

५-३० बजे लड़के खाना खाते हैं। ७ से ७-३० बजेतक कथा-कीर्तनके बाद वे सो जाते हैं। ७-३० से ९ बजेतक मणिलालको पढ़ाता हूँ। दास[१] डर्बनमें प्रेस खोलना चाहता है। सम्भवतः वीरजी भी वहाँ जायेंगे।

यह पत्र चंचीको पढ़नेके लिए भेज देना। उसे अलग से पत्र लिखनेकी फुरसत नहीं है।

बापूके आशीर्वाद

गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (एस० एन० ९५३८) की फोटो-नकलसे।

३३४. एक संशोधन

गत मासकी १८ तारीखके अंकमें हमने नेटालके स्कूलोंके सम्बन्धमें हाल ही प्रकाशित नियमों का उल्लेख करके बताया था कि ऐसे नियम पहली ही बार बनाये गये हैं जिनके द्वारा भारतीय विद्यार्थियोंका उनके लिए खास तौरपर निश्चित स्कूलोंके अलावा अन्य सरकारी स्कूलोंमें दाखिल होना निषिद्ध कर दिया गया है। किन्तु अब हमारा ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित किया गया है कि इसी प्रकारके नियम कुछ समय पहले भी बनाये गये थे और तब भी हमने उनपर टिप्पणी की थी। हमें खेदके साथ कहना पड़ता है कि इन नियमोंसे हमने यह निष्कर्ष नहीं निकाला था कि कठिनाइयोंकी जो लम्बी सूची पहलेसे ही मौजूद थी, उसमें अधिकारियोंने एक और कठिनाई जोड़ दी। किन्तु महज इस बातसे कि वह कुछ समय से चली आ रही है, उस बुराईकी गम्भीरता कुछ कम नहीं हो जाती। जब प्रान्तीय सरकार इन नियमोंको नया रूप दे रही थी तब वह इस अवसरका उपयोग दोषोंको स्थायी बनानेके बदले उन्हें दूर करनेके लिए कर सकती थी।

  1. पुरुषोत्तमदास देसाई।