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हेटसॉंगवाद


हमारा ध्यान इस तथ्य की ओर भी खींचा गया है कि हमारी टिप्पणीसे कोई जल्दबाज पाठक यह निष्कर्ष भी निकाल सकता है कि नेटालके भारतीय बच्चे सरकारी स्कूलोंमें चौथी कक्षाके आगे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते। जिस मित्रने हमें इस प्रकार सावधान करने की कृपा की है उसीने यह भी बताया है कि डर्बनके जिस स्कूलको पहले उच्चतर भारतीय विद्यालय (हायर-ग्रेड इंडियन स्कूल) कहा जाता था, उसमें भारतीय बच्चों को छठे दर्जेतक शिक्षा देनेका प्रबन्ध है। यह बात हम भली-भाँति जानते हैं। किन्तु हमने कहा यह था कि वस्तुतः भारतीय बच्चे प्राथमिक शिक्षासे आगेकी शिक्षा प्राप्त नहीं कर सकते। और पहलेका उच्चतर भारतीय विद्यालय, जिसे बराबर एक असंगत नामसे पुकारा जाता रहा है, प्राथमिक शिक्षासे आगे कोई शिक्षा नहीं देता। उस स्कूलकी छठी कक्षा किसी प्राथमिक स्कूलकी ही है और वह मुश्किलसे भारतके उच्च विद्यालयकी चौथी कक्षाके बराबर है। जो बच्चा केप विश्वविद्यालयसे मैट्रिक करना चाहता है, उसके लिए इस स्कूलमें कोई व्यवस्था नहीं है। सम्भव है, उसे सामान्य उच्च विद्यालयों या नेटाल विश्वविद्यालय-कॉलेजमें प्रवेश ही न मिले। उसे स्वयं कोई शिक्षक रखकर पढ़ना चाहिए। यह ऐसी बाधा है जिसकी यदि समाज शिकायत करता है तो वह उचित ही है। अभी उस दिन केप टाउनमें एक मुस्लिम स्कूलके उद्घाटनके अवसरपर श्री मेरीमैनने कहा था कि रंग-भेदके सवालका असली हल शिक्षा है। श्री मेरीमैनकी बात सोलहों आने सही है। किन्तु संघ सरकार तो रंगदार बच्चोंकी शिक्षाके मार्ग में, चाहे वे वतनी हों या एशियाई, हर तरहकी बाधा ही उपस्थित करती है।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १-२-१९१३

३३५. हेटसॉंगवाद

जब जनरल हेटसॉग संघीय मन्त्रिमण्डलके सदस्य थे, तब उसमें उनकी क्या स्थिति थी, इस सम्बन्धमें 'स्टार' के विशेष संवाददाताने जो कुछ कहा है, वह यदि सच है, तो बात चिन्ताजनक है। हमने गत सप्ताह 'स्टार' के संवाददाताकी रिपोर्ट छापी थी; इस रिपोर्टके अनुसार श्री गोखलेका आगमन जनरल बोथा और जनरल हेटसॉंगके बीच झगड़े का एक तात्कालिक कारण बन गया। जनरल हेटसॉंग चाहते थे कि चूंकि वतनी मामले उनके अधीन हैं, इसलिए श्री गोखले उनसे मिलें।[१] स्पष्ट है कि जनरल हेटसॉंगके विचारमें वतनी और एशियाई लोगोंको एक ही श्रेणीमें रखा जाना चाहिए। पर अन्तमें बात जनरल वोथाकी ही रही। वे श्री गोखलेसे

  1. स्टारकी रिपोर्ट में बताया गया था कि हेटसॉंगके एक मित्रने कहा कि चूँकि वतनी मामलोंके मन्त्रीके रूपमें वे भारतीयोंके सवालसे सम्बद्ध हैं, इसलिए श्री गोखलेसे उन्हें ही बातचीत करनी चाहिए। किन्तु, जनरल बोथा इसे साम्राज्यीय प्रश्न मानते थे और इसलिए प्रधान मन्त्रीकी हैसियतसे स्वयं ही उसका निबटारा करना चाहते थे। इसके बाद मन्त्रिमण्डलमें बड़ी गरमागरम बहस हुई, और अन्तमें भारतीय प्रश्नके सम्बन्धमें एक मध्यममार्गी प्रस्ताव स्वीकार कर लिया गया। स्टारके संवाददाताको समाचार देनेवाले व्यक्तिका कहना था कि जब जनरल हेटसॉगने डी' विल्टके अपने भाषण में यह कहा था कि हमारे लिए पहले दक्षिण आफ्रिकाके हितोंका महत्व है और फिर साम्राज्यके हितोंका तब उनके मनमें यही घटना रही होगी। उसके विचारसे हेटसॉगका मन्त्रिमण्डलसे बाहर निकलना जनरल बोथा तथा उनके बीच बहुत दिनोंसे चली आ रही दुर्भावनाकी चरम परिणति था। इंडियन ओपिनियन, २५-१-१९१३।