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३३६. जार्मिस्टनके भारतीय


'ईस्ट रैंड एक्सप्रेस' से मालूम हुआ है कि जार्मिस्टन बस्तीके भारतीयोंको फरवरी महीने के अन्ततक नई बस्ती में जाना पड़ेगा। वतनी सब चले गये हैं। उन्हें नगरपालिका मुआवजे में १,५०० पौंड दिये हैं। भारतीय अभी नहीं गये हैं। नगरपालिका उन्हें ७०० पौंड तक देनेके लिए तैयार है। हमारा सहयोगी 'एक्सप्रेस' लिखता है कि भारतीयों को ऐसा मुआवजा लेतेका हक नहीं है। यदि नगरपालिका उन्हें मुआवजा देती है तो यह उसकी मेहरबानी और अच्छाई है। 'एक्सप्रेस' को ऐसा करना अच्छा नहीं लगता। वह कहता है कि यदि मुआवजाके ध्यानसे देना हो तो उसका खर्च ट्रान्सवालकी सरकारको उठाना चाहिए। फिर उसका कुछ भाग नगरपालिका भले ही दे। तथ्य यह है कि यदि नगरपालिका कुछ देती है तो उसका कारण मेहरबानी नहीं, बल्कि भय है - सत्याग्रह, लन्दन समिति और ब्रिटिश सरकारका भय। उसे भय है, कहीं सोते भारतीय जग गये तो! कहीं लॉर्ड ऍम्टहिल जर्मिस्टन नगरपालिकाको बदनाम करें तो! कहीं ब्रिटिश सरकारने इसे अनुचित माना तो! नगरपालिका शायद इनमें से किसी एक भयकी उपेक्षा कर देती; परन्तु इन सब भयोंके एक साथ उपस्थित होनेपर उसके लिए दीनता अपनानेके अलावा और कोई चारा नहीं है।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १-२-१९१३

३३७. आरोग्यके सम्बन्ध में सामान्य ज्ञान [-५]

३. हवा

संक्षेप में हमने अपने शरीरकी रचना देखी। इसके आधारपर हमें ज्ञात हुआ कि शरीरको तीन प्रकारकी खुराक चाहिए - हवा, पानी और अन्न। इनमें हवा सबसे महत्वपूर्ण खुराक है। यही कारण है कि प्रकृतिने उसे सब जगह इतना सुलभ रखा है; वह हमें बिना किसी खर्चके उपलब्ध है। ऐसा होते हुए भी आजकलकी नई सभ्यताने हवाको भी कीमती बना डाला है। आजके जमानेमें हवा खानेके लिए हमें दूर देशोंमें जाना पड़ता है और जानेमें पैसा खर्च होता है। बम्बई में रहनेवाले की तबीयत बिगड़ जाये तो वह माथेरानकी हवा खानेपर ही सुधर सकती है। और जो बम्बई में रहते हैं, उन्हें मलाबार हिलमें रहना नसीब हो, तो वहाँ अच्छी हवा मिल पाये। परन्तु इसके लिए रुपया चाहिए। डर्बनमें रहनेवालेको यदि शुद्ध हवा प्राप्त करनी हो, तो उसे बेरियामें जाकर रहना चाहिए। इसमें भी पैसे लगते हैं। अतः, आजके जमाने में यह कहना गैरवाजिब ही है कि हवा मुफ्त में मिलती है।

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