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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हवा चाहे मुफ्त में मिले, अथवा उसके लिए पैसा खर्च करना पड़े, लेकिन उसके बिना हमारा कार्य क्षण-भर भी नहीं चल सकता। हम देख चुके हैं कि रक्त सारे शरीरमें दौड़ता है और पुनः फेफड़ोंमें आकर साफ होता है और फिर दौड़ता है। उसकी यह गति दिन-रात हमारे शरीरमें चलती रहती है। हम प्रत्येक श्वासके साथ जहरीली हवा बाहर फेंकते हैं और जब श्वास अन्दरको खींचते हैं तो बाहरी हवा में जो प्राणवायु है, उसे भीतर लेते हैं और उससे रक्तको शुद्ध करते हैं। श्वासोच्छ्वासकी यह क्रिया प्रति क्षण चलती है और इसीपर जीवन आधारित है। पानीमें डूबनेपर लोग मर जाते हैं, उसका कारण केवल इतना ही है कि उस समय शरीरमें प्राणवायुका प्रवेश नहीं हो पाता और न भीतरकी जहरीली वायुको बाहर फेंका जा सकता है। जो लोग समुद्रसे मोती निकालते हैं वे एक बख्तर पहन कर पानीमें उतरते हैं और पानीको सतहके बाहर निकली हुई एक नलीके जरिये बाहरकी हवा लेते रहते हैं। इसीके बलपर वे अधिक समय तक पानीके अन्दर रह सकते हैं।

कुछ डॉक्टरोंने प्रयोग करके यह साबित कर दिया है कि मनुष्यको यदि ५ मिनटके लिए भी हवाके बिना रखा जाये तो उसका प्राणान्त हो जायेगा। कितनी ही बार माताके पार्श्वमें सोया हुआ बालक श्वास-निरोध होनेके कारण मर जाता है। कारण यह होता है कि बच्चेकी नाक और उसका मुँह माँके शरीरसे दब जाता है और उसे बाहरकी हवा नहीं मिल पाती।

इस प्रकार हम देख सकते हैं कि हवा हमारे लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण खुराक है और वह हमें बिन मांगे ही मिलती है। जल और अन्न तो जब हम माँगते हैं या उनकी खोज करते हैं, तभी मिल पाते हैं, परन्तु हवा तो हमारी इच्छाके बिना भी हमें मिलती रहती है।

जिस प्रकार हम दूषित जल और खराब खुराक लेते हुए हिचकते हैं, यही बात हवाके सम्बन्धमें भी होनी चाहिए। परन्तु हकीकत तो यह है कि जिस हदतक हम बिगड़ी हुई हवाका सेवन करते हैं, उस हदतक हम खराब अन्न और जल नहीं ग्रहण करते। दृष्टिका ही दोष है। हम लोग तो मूर्तिपूजक है। हवा चूंकि आँखसे दिखाई नहीं देती, अतः हम कब-कब खराब हवाका सेवन करते हैं, इसका हमें खयाल नहीं रहता। दूसरोंका स्पर्श किया हुआ भोजन करते हुए हम हिचकिचाते हैं। दूसरेका छुआ हुआ पानी पीते हुए विचार करते हैं और यद्यपि हम जरा भी घृणाका भाव न रखते हों, तो भी हम उस खुराक या जलका सेवन तो कभी नहीं करते जो दूसरे मनुष्यके द्वारा वमन किया गया है। अकालसे पीड़ित व्यक्तिके समीप भी किसीका उलटी किया हुआ अन्न रख दिया जाये, तो वह मरना कबूल करेगा, उसे ग्रहण करना नहीं। लेकिन पास खड़े हुए व्यक्ति द्वारा वमन की गई - श्वास द्वारा छोड़ी हुई हवा हम सभी बिना किसी प्रकारकी नफरत किये ग्रहण करते रहते हैं। आरोग्य-शास्त्रके नियमके आधारपर तो यह वमन की गई हवा वमन किये हुए अनाज के समान ही दूषित है। यह बात साबित हो चुकी है कि एक मनुष्यके द्वारा छोड़ा हुआ श्वासोच्छ्वास यदि दूसरे मनुष्यके फेफड़ोंमें भर जाये, तो उसकी तत्काल मृत्यु हो जायेगी। यह श्वास इतना जहरीला होता है! किन्तु फिर भी एक कोठरी में