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प्रवासके दो मामले


बैठे या सोते हुए मनुष्य इस प्रकारका जहरीला श्वासोच्छ्वास हर समय ग्रहण किया करते हैं। इसे मनुष्यकी खुशकिस्मती ही समझिए कि हवा एक ऐसी चंचल चीज है कि वह हर क्षण बहती ही रहती है और क्षण-भर में ही सर्वत्र फैल जाती है। बारीक-से- बारीक छिद्रोंमें से भी यह प्रवेश कर सकती है। यही कारण है कि जहाँ हम लोग एक कोठरी में इकट्ठे होकर हवाको जहरीला बनाते रहते हैं, वहीं दूसरी ओर दरवाजेकी दरारोंमें से बाहरकी हवा कमोबेश आया ही करती है और हम श्वासमें बिलकुल दूषित हवा ही नहीं खींच पाते। जिस हवाको हम बाहर फेंकते हैं, वह निरन्तर शुद्ध होती रहती है। ज्यों ही भीतरकी हवाको हम बाहर छोड़ते हैं कि यह जहरीली हवा बाहरकी हवामें एक क्षणमें प्रवाहित हो जाती है। इस प्रकार प्रकृति शुद्ध हवाके आवश्यक परिणामको बनाये रखती है। हवा हमारी इस छोटी-सी पृथ्वीके चारों ओर एक बड़े विस्तारमें लिपटी हुई रहती है।

तो इस प्रकार हम जान सकते हैं कि अनेक लोग दुर्बल और बीमार क्यों बने रहते हैं। सैकड़े निन्यानवे फ़ीसदी बीमारियोंका कारण खराब हवा ही होती है, इसमें किसी प्रकारकी शंकाकी गुंजाइश नहीं है। क्षय, ज्वर, आदि अनेक प्रकारके संक्रामक रोगोंका मूल कारण तो हमारे द्वारा सेवन की गई खराब हवा ही है। इसीलिए इन रोगोंको दूर करनेका प्राथमिक, सहज और अन्तिम उपाय शुद्धसे-शुद्ध हवा ही है। इस दुनिया में ऐसा कोई वैद्य, डॉक्टर या हकीम नहीं है जो इसकी बराबरी कर सके। क्षयका रोग फेफड़ोंके सड़ जानेकी निशानी है। फेफड़ा जो सड़ जाता है, सो जहरीली हवा के कारण ही। जिस प्रकार खराब कोयला भर देनेसे इंजिन खराब हो जाता है, वही बात फेफड़ोंकी है। इसीलिए आजके डॉक्टर जो असलियतको समझ पाये हैं, वे क्षयके रोगके लिए सबसे अचूक इलाज यही बतलाते हैं कि चौबीसों घंटे खुली हवाका सेवन किया जाये। इसके मुकाबलेमें दूसरे सारे उपाय गौण हैं। शुद्ध हवाके बिना एक भी उपाय कारगर नहीं हो सकता।

[ गुजरातीसे ]

इंडियन ओपिनियन, १-२-१९१३

३३८. प्रवासके दो मामले

न्यायमूर्ति ब्रूमने प्रवास (इमीग्रेशन) के दो मामलों में फैसले दिये हैं। ये दोनों मामले जानने लायक हैं। एक मामले में एक पिताने शिकायत की थी कि प्रवासी-अधिकारीने उसके लड़केको निर्वासित कर दिया है। उसने हर्जानेका दावा करते हुए लड़केको अदालतके सामने भी हाजिर करनेकी माँग की। अधिकारीने लड़केके [देशमें रहने के] दावेको नामंजूर कर दिया था। इसपर पिताने सर्वोच्च न्यायालयसे निषेधाज्ञा लेकर लड़केका निर्वासन रुकवा दिया। इस बीच उसने अधिकारीके सामने अतिरिक्त प्रमाण प्रस्तुत किये; परन्तु अधिकारीने उन्हें भी नामंजूर कर दिया। इसके बाद अधिकारीने लड़केको निर्वासित करनेके लिए कानूनके मुताबिक कार्रवाई की। उसने सम्मन जारी करने के लिए मुकदमेको मुल्तवी किया। फिर उसका विचार बदल गया