पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/४९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


और उसने सम्मन जारी किये बिना और अदालतका हुक्म लिये बिना लड़केको निर्वासित कर दिया। उसने यह मान लिया कि उसे ऐसा करनेका अधिकार है। पिताकी दलील यह थी कि अधिकारीको ऐसा अधिकार नहीं है। अदालतने यह दलील नामंजूर कर दी और फैसला दिया कि अधिकारीको अदालतके हुक्मके बिना निर्वासित करने का हक है। इस फैसलेका परिणाम भयंकर होगा। इससे अधिकारीके हाथमें अन्याय करनेकी ऐसी सत्ता आ गई है कि वह चाहे तो हर एक भारतीयका हक खत्म कर सकता है।

दूसरा मामला जमानतकी १०० पौंडकी रकम वापस लेनेका था।[१] अदालतने फैसला दिया है कि यदि १०० पौंड प्रवासी कानूनके अन्तर्गत जमा किये गये हों तो उन्हें वापस देना-न-देना सरकारकी मर्जीपर है। जिसके लिए रुपया जमा किया गया है उसका हक साबित हो जाये तो वह वापस दिया जा सकता है, और इस प्रकार जमा की हुई रकमको जब्त करनेके लिए सरकारको अदालत के हुक्मकी जरूरत भी नहीं है। इस तरहकी दलील देकर अदालत ने यह मुकदमा भी खारिज कर दिया है। अदालतने सिर्फ यह कहा है कि जहाँ रुपया निश्छल भावसे जमा कराया गया हो वहाँ सरकारको दया करके उसे वापस दे देना चाहिए।

ऊपर के दोनों मामलों का परिणाम भयंकर है। इनसे प्रवासी अधिकारियोंकी सत्ता बहुत बढ़ गई है और ऐसी स्थिति आ गई है कि भारतीय भयके कारण ही इस देश में आना बन्द कर दे सकते हैं। इसके विरुद्ध जबरदस्त आन्दोलन करना हमारा फर्ज है।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९१३

३३९. कांग्रेस में हमारे सवालपर विचार

अभी इस डाकसे हमें कांग्रेस [के अधिवेशन] का विवरण[२] मिला है। उससे स्पष्ट है कि यहाँके भारतीयों के प्रश्नपर वहाँ पहलेकी अपेक्षा अधिक चर्चा हुई। अध्यक्ष श्री मुधोलकरने[३] अपने भाषण में यहाँकी पूरी स्थिति बताई, श्री गोखलेके कामका समर्थन किया, हमारी मदद करते रहने की जरूरत बताई और कहा कि गिरमिटकी प्रथा बिलकुल बन्द कर दी जानी चाहिए। स्वागत समिति के अध्यक्ष माननीय श्री मजहरुल हकनें[४] अपने भाषण में हमारे सवालपर जोर दिया और यहाँ तक

  1. जहाँ कहीं कोई एशियाई किसी प्रवासी अधिकारीके निर्णयके विरुद्ध अपील करके अपने अधिवास-सम्बन्धी अधिकारोंकी कसौटी किसी न्यायालय में करवाना चाहता था, उसे जमानतके तौरपर सौं पौंड जमा करने पड़ते थे।
  2. बाँकीपुर कांग्रेस अधिवेशनका विवरण, १९१२।
  3. रघुनाथ नरसिंह मुधोलकर (१८५७-१९२१)।
  4. मौलाना मजहर-उल-हक (१८६६-१९३०); इंग्लैंडमें शिक्षा ग्रहण करते हुए १८८८ में "अंजुमन इस्लामिया" की स्थापना की; १८९३ में अवधमें मुंसिफके पदपर नियुक्त, किन्तु ३ वर्ष बाद ही उक्त पदसे इस्तीफा; मुसलिम लीगके संस्थापकों में से एक, बादमें उसके मन्त्री और १९१५ के बम्बई अधिवेशनके अध्यक्ष; पृथक निर्वाचन पद्धतिके अन्तर्गत १९१० में केन्द्रीय विधान परिषदके सदस्य; सन् १९१४ में इंग्लैंड जानेवाले कांग्रेस प्रतिनिधि-मण्डलके सदस्यः १९१६ में लखनऊमें कांग्रेस-लीग सप्तझौता करानेमें मदद पहुँचाई: सन् १९१७ में चम्पारन आन्दोलनके समय गांधीजीका साथ दिया और १९२० में असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया; मदरलैंडकी स्थापना की और उसमें लिखे गये अपने लेखोंके कारण १९२१ में जेल गये; बिहार विद्यापीठ और सदाकत आश्रमके संस्थापकों में से एक।