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कांग्रेस में हमारे सवालपर विचार


कहा कि यदि संघ-सरकार भारतीयोंके सवालका फैसला सन्तोषजनक रूपमें न करे तो भारत सरकारपर दबाव डालकर बदलेकी कार्रवाई कराई जाये। उन्होंने बताया कि भारत सरकार के हाथमें ऐसे बहुत-से साधन हैं, जिनसे संघ सरकार के होश ठिकाने लाये जा सकते हैं। हमारे सम्बन्धमें पास किया गया यह प्रस्ताव क्रममें दूसरा ही था। इससे भी प्रकट होता है कि हमारे सवालको कितना महत्व दिया गया। प्रस्ताव श्री गोखलेने रखा, यह खबर तो हमें तारसे मिल ही चुकी है। कांग्रेसने जिस आशयका प्रस्ताव पिछली बार पास किया था[१], यह प्रस्ताव उसी आशयका था। इलाहाबादके 'लीडर' पत्रने लिखा है कि श्री गोखलेने यह प्रस्ताव पेश करते वक्त एक घंटे तक भाषण दिया, जिसे सुनकर श्रोता स्तब्ध रह गये। गिरमिटियोंकी दुर्दशा बताते हुए श्री गोखलेकी आँखोंसे आँसू बहने लगे और उनका कण्ठ रुद्ध हो गया। इस सवालका समर्थन भी प्रमुख नेताओं द्वारा किया गया। माननीय श्री मदनमोहन मालवीय[२], माननीय श्री मजहरुल हक, श्री लाला लाजपतराय[३], माननीय श्री हरचन्द्र राय बिशनदास, श्री प्रमथनाथ बनर्जी, श्री मदनजीत[४] और श्री सी० वाई० चिन्तामणि समर्थकोंमें थे। इस तरह जब हमारे सवालपर भारतमें इतनी गर्मागर्म चर्चा हो रही है, तब हमें यहाँ दूना प्रयत्न करना चाहिए। भारत हमारी मदद तभी कर सकता है जब हम भी अपनी पूरी शक्ति लगायें।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, ८-२-१९१३


  1. देखिए "श्री पोलक भारतीय राष्ट्रीय महासभामें" पृष्ठ २०३।
  2. पण्डित मदन मोहन मालवीय (१८६१ - १९४६); कांग्रेसके "पूज्य पुरुष", सम्पादक, हिन्दुस्तान, १८८७ -८९, इंडियन यूनियन, १८८९-९२ और अभ्युदय, १९०७-०९; सदस्य, १९०२ -१२ में प्रान्तीय विधान सभाके, १९१०-१२ में केन्दीय विधान परिषदके और १९२४ में भारतीय विधान सभाके; कांग्रेससे १८८६ से ही सम्बद्ध और उसके १९०९ तथा १९१८ के अधिवेशनोंके अध्यक्ष; सन् १९१६ में काशी हिन्दू विश्वविद्यालयकी स्थापना की और १९१९ से १९४० तक उसके उपकुलपति रहे; हिन्दू महासभाके अध्यक्ष, १९२३-२५; सनातन धर्म महासभाके अध्यक्ष, १९२८; सन् १९३१-३२ की गोलमेज कान्फ्रेंसमें शामिल; देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय १० और भाग ५, अध्याय ३७।
  3. पंजाब केसरी लाला लाजपतराय (१८६५-१९२८); समाज-सुधारक, पत्रकार, सर्वेट्स ऑफ पीपुल्स सोसाइटीके संस्थापक, कांग्रेसके अग्रणी कार्यकर्ता, अपनी राजनीतिक गतिविधियोंके लिए १९०४ में निर्वासित; १९०६ और १९१४ में भारतीय शिष्ट-मण्डलके सदस्य के रूपमें इंग्लैंड गये; १९२० में कांग्रेसके असाधारण अधिवेशनके अध्यक्ष; लाहौर में साइमन कमीशनके खिलाफ प्रदर्शन करते हुए पुलिस लाठी चार्ज में शहीद हो गये।
  4. मदनजीत व्यावहारिक; भारतीय कांग्रेसके सामने दक्षिण आफ्रिकी प्रश्नको बराबर लाते रहे; १८९८ में गांधीजीके सुझावपर डर्बनमें इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेसकी स्थापना की; १९०३ में इंडियन ओपिनियन प्रारम्भ किया, जिसे १९०४ में गांधीजीने अपने हाथोंमें ले लिया; बादमें यूनाइटेड बर्माके संस्थापक और उसका सम्पादन किया; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २७७ और खण्ड ४, पृष्ठ ३०१ तथा खण्ड ६, पृष्ठ ३२१।