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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-६]


हवाको दूषित करनेके मुख्य साधन हैं, हमारे संडास, हमारे आँगन और जहाँ अलहदा पेशाबघर होते हैं, वहाँ पेशाबघर। बहुत कम लोग संडासोंकी गन्दगीसे होनेवाली हानियोंसे परिचित होते हैं। बिल्ली और कुत्ते भी जब पाखाना फिरते हैं, तब प्रायः अपने पंजोंसे जमीनको खोद लेते हैं और उस गढ़े में मल त्याग करके ऊपर पुनः धूल फैला देते हैं। जहाँ सुधरे हुए ढंगके फ्लश - संडास नहीं हैं, वहाँ इसी प्रकार करना चाहिए। हमें चाहिए कि हम अपने संडासमें राख या सूखी मिट्टीकी एक बाल्टी भरकर रखें और हर बार जब उसका उपयोग करें, तब मलपर वह राख या सूखी मिट्टी डाल दिया करें। इससे बदबू भी नहीं फैलेगी और मक्खी आदि कीटाणु भी मैलेपर बैठकर वह गन्दगी फैला नहीं सकेंगे। जिनकी नाक बिगड़ न गई हो अथवा मैलेकी बदबूकी अभ्यस्त न हो गई हो, वे इस बातको अच्छी तरह जान सकते हैं कि मैला खुला रहकर हवामें कितनी गन्दगी फैलाता है। यदि कोई हमारी खुराक में मैला मिला दे और उसे हमारे सामने लाकर रख दे, तो हमें उलटी हो जायेगी। संडासोंकी बदबू हवा में फैलती रहती है और हम लोग उस हवाका सेवन करते रहते हैं, किन्तु सच पूछें तो पाखाना मिले हुए अन्नमें और इस हवामें तिल भर भी फर्क नहीं है। यदि कुछ फर्क है, तो इतना ही है कि मलमिश्रित अन्नको हम खुली आँखसे देख सकते हैं, किन्तु हवामें मिश्रित मलको हम देख नहीं पाते। पाखानोंकी बैठक आदि भी बिलकुल साफ रखनी चाहिए। ऐसा काम करते हुए हम लोग शर्म खाते हैं अथवा करते हुए झुंझलाते भी हैं। परन्तु जो मैला हमारे ही शरीरसे निकलता है और जिसे हम दूसरोंके जरिये साफ करवाते हैं, उसे हम स्वयं भी क्यों नहीं साफ कर सकते? ऐसा काम करनेमें मुझे तो कोई बुराई नजर नहीं आती। स्वयं सीखकर हमें यह कार्य अपने बच्चोंको भी सिखाना चाहिए। मैलेकी बाल्टी जब भर जाये, तब मैलेको दो-एक फीट गहरे गढ़में उलटाकर उसपर अच्छी तरहसे धूल ढँक देनी चाहिए। यदि हमें जंगलमें जाकर मैला त्यागनेकी आदत हो, तो घरोंसे काफी दूर जाना चाहिए। वहाँपर हथफावड़े से एक छोटा-सा गढ़ा खोदकर उसमें मलत्याग करना चाहिए और खोदी हुई मिट्टीको उसपर ढँक देना चाहिए।

हम लोग पेशाब भी चाहे जहाँ करके हवाको दूषित किया करते हैं। यह आदत सर्वथा त्याग देने योग्य है। जहाँ पेशाब करनेकी खास जगह न बनी हो, वहाँ घरोंसे कुछ दूर जाकर सुखी हुई जमीनपर पेशाब करना चाहिए और उसपर भी धूल डाल देना चाहिए। मलको बहुत गहरा नहीं दबाने के कुछ विशेष कारण हैं। एक तो यह कि यदि उसे बहुत गहरा दबा दिया जाये, तो उसपर सूरजकी गरमी काम नहीं कर सकेगी। और दूसरे यह कि अधिक गहरे दबे हुए मलके कारण आसपासके पानीके स्रोतको हानि पहुँचनेकी सम्भावना है।

हम लोग गलीचेपर, कोठरीकी जमीनपर, आँगनमें, या जहाँ-तहाँ बिना विचार ही थूक देते हैं। थूक भी अनेक बार जहरीला होता है। क्षयके रोगीका थूक बहुत ही जहरीला माना जाता है। उसमें से क्षयके कीटाणु उड़कर दूसरेके श्वासोच्छ्वासमें प्रवेश करते हैं और उसे नुकसान पहुँचाते हैं। थूकनेसे घर खराब होता है, यह बात तो