पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/४९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६१
आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-७]


एक जालीदार कपड़े की पट्टी बाँध लेती हैं, जिसमें से होकर साफ हवा मुँहमें प्रवेश करती है। कुछ एक दिनों उपयोग कर लेनेके बाद यदि इस पट्टीकी जाँच की जाये, तो इसमें भी ये रजकण दिखाई देंगे। किन्तु ईश्वरने हमारी नाकमें ही ऐसी छलनी लगा रखी है कि हवा नाकसे साफ होनेके बाद ही फेफड़ोंमें पहुँचती है और सो भी गर्म होकर। इसलिए हरएक मनुष्यको नाकके जरिये ही श्वास लेना सीखना चाहिए। यह कुछ मुश्किल बात नहीं है। जब हम बोल न रहे हों, तब मुँह बन्द रखना चाहिए। जिन लोगोंको मुँह खुला रखनेकी आदत पड़ गई हो, उन्हें चाहिए कि रातको सोते समय वे मुँहपर पट्टी बाँधे। इससे मजबूरन नाकके जरिये ही साँस लेनी पड़ेगी। ऐसे लोगों को सुबह और शाम खुली हवा में खड़े होकर नाकके जरिये कोई २० बार श्वास लेनी चाहिए। ऐसा करनेसे नाकसे ही श्वास लेनेकी आदत पड़ जायगी। जो मनुष्य तन्दुरुस्त है और श्वास भी नाकसे ही लेता है, वह भी यदि नाकके जरिये शुद्ध हवामें हमेशा श्वास ले तो उसकी छाती मजबूत और चौड़ी होगी। यह प्रयोग तो हरएक मनुष्यको करके देखना चाहिए। इसे आरम्भ करनेसे पूर्व अपने सीनेका माप ले लेना चाहिए और एक महीनेके बाद पुनः माप लेना चाहिए। प्रयोगके बाद हम देखेंगे कि थोड़ेसे समय में ही छाती पहलेसे चौड़ी हो गई है। सैंडो आदि पहलवान डम्ब-बेलकी जो कसरत करवाते हैं, उसमें भी यही रहस्य छिपा हुआ है। बहुत तेजी से डम्ब-बेलकी कसरत करनेपर श्वासोच्छ्वास गहरा और अधिक लेना पड़ता है और उससे छाती खूब चौड़ी और मजबूत बन जाती है।

इस प्रकार हवा कैसे ली जाये, इसे जाननेकी और साथ ही रात-दिन खुली हवा लेनेकी आदत डालना बहुत जरूरी है। हमारी साधारण आदतें कुछ ऐसी पड़ गई है कि हम दिनके समय घर में या दूकानोंमें बन्द पड़े रहते हैं और रातके समय भी तिजोरी-जैसी कोठरियोंमें सोते हैं। जो खिड़कियाँ और दरवाजे होते हैं, उन्हें बन्द कर देते हैं। यह आदत बहुत ही बुरी है।

जितने समय तक बने, और खास तौरसे सोते समय तो, हमें खुली हवा ही लेनी चाहिए। अतः जिन लोगोंको सहूलियत हो, उन्हें तो खुले बरामदों, छतों या छज्जोंमें ही सोना चाहिए। किन्तु जिन लोगोंके नसीबमें ऐसा कर सकना न हो, उन्हें यथासम्भव अपनी कोठरीके सभी दरवाजे और खिड़कियाँ खुली रखनी चाहिए। हवा खाना तो हमारी चौबीसों घंटेकी आवश्यकता है, इससे हमें बिलकुल ही डरना नहीं चाहिए। यह सोचना बिलकुल वहमकी बात है कि खुली हवा अथवा सुबहकी स्वच्छ हवा लेनेसे कोई बीमार हो जायेगा। जिन लोगोंने बुरी आदतोंसे अपने फेफड़ोंको खराब कर लिया है, यह बहुत सम्भव है कि उन्हें एकाएक खुली हवा लेनेके कारण जुकाम हो जाये। लेकिन जुकाम से डरनेका कोई कारण नहीं है। यह थोड़े समय में ही दूर हो जायेगा। क्षय-रोगके भुक्तभोगियोंके लिए आजकल यूरोप में स्थान-स्थानपर खुली हवा मिल सके, ऐसे खुले खुले मकान बनाये गये हैं। देश में महामारीका उपद्रव रहा ही करता है। इसका खास कारण भी हमारा हवाको खराब करना और इस खराब हवाका सेवन करनेकी हमारी बुरी आदत ही है। नाजुकसे-