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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


नाजुक मनुष्य भी खुली हवाका सेवन करे, तो उसे फायदा ही होगा। यह एक ऐसा तथ्य है, जिसे पूर्ण रूप से मान लेना चाहिए। यदि हम हवाको दूषित न करना और स्वच्छ हवाका सेवन करना सीख लें, तो अनेक रोगोंसे सहज ही बच सकेंगे और दक्षिण आफ्रिका-जैसे इस मुल्क में हमपर गन्दे रहनेका भी जो एक आरोप है, वह भी कुछ हद तक दूर हो सकेगा।

जिस प्रकार खुली हवामें सोना अत्यन्त आवश्यक है, उसी प्रकार मुंह ढँककर न सोना भी जरूरी है। अनेक भारतीयोंकी आदत मुँह ढँककर सोनेकी है। ऐसा करनेसे हम अपने ही श्वासमें छोड़ी हुई जहरीली हवाका पुनः सेवन करते हैं। हवा वस्तु ही ऐसी है कि उसे जरा-सा मार्ग मिल जाये तो वह प्रवेश कर जाती है। हम अपने ओढ़नेके वस्त्रको कैसा ही लपेट कर क्यों न सोयें, तब भी बाहरकी थोड़ी-बहुत हवा तो अन्दर प्रवेश कर ही जाती है। यदि ऐसा न हो तो सिरको ढँककर सोनेसे दम घुट जाता और हम मर जाते। परन्तु ऐसा नहीं होता, क्योंकि थोड़ी-बहुत बाहरकी प्राणवायु हमें मिलती ही रहती है। परन्तु उतना काफी नहीं है। यदि सिरमें हवा लगती हो, तो सिरपर कोई दूसरा वस्त्र लपेट लेना चाहिए अथवा कनटोपी पहन लेनी चाहिए। परन्तु नाक तो अवश्य खुली रखनी चाहिए। चाहे जैसी ठण्ड पड़ती हो, नाक ढँककर तो कभी नहीं सोना चाहिए।

हवाका और उजालेका कुछ ऐसा घनिष्ठ सम्बन्ध है कि इसी प्रकरणमें उजाले के सम्बन्ध में भी दो शब्द लिख देने चाहिए। जिस प्रकार हवाके बिना हमारा निर्वाह नहीं हो सकता, उसी प्रकार उजालेके बिना भी जिया नहीं जा सकता। नर्कमें हमने उजालेका ही अभाव माना है। जहाँ रोशनी नहीं होगी, वहाँकी हवा हमेशा खराब ही होगी। यदि हम किसी अँधेरी कोठरी में प्रवेश करें, तो वहाँ की हवामें हमें बदबू मालूम होगी। अँधेरेमें हम अपनी आँखका उपयोग भी नहीं कर सकते। इससे साबित होता है कि हम उजालेमें ही रहनेके लिए पैदा हुए हैं। जितने अँधेरेकी जरूरत प्रकृतिने हमारे लिए महसूस की है, उतना उसने हमें सुखदायक रात्रिको पैदा करके प्रदान किया है। बहुतेरे मनुष्योंको कुछ ऐसी आदत पड़ जाती है कि भीषण गरमीके दिनोंमें भी वे लोग अपनी गुफा-जैसी कोठरीमें, उजाले और हवाका रास्ता बन्द करके, बैठते हैं या सोते हैं। जो लोग हवा और उजालेके बिना रहते हैं, निस्तेज और अशक्त नजर आते हैं।

यूरोप में आजकल ऐसे डॉक्टर हैं जो बीमारोंको खुली हवा और भरसक उजाला प्रदान करके उनके रोगोंको दूर करते हैं। वे लोग केवल चेहरेको ही हवा और उजाला देते हों, यही नहीं; बीमारको लगभग नग्न दशा में ही रखते हैं, और सारे शरीरकी चमड़ीपर उजाले और हवाका असर होने देते हैं। इस प्रकारके इलाजसे भी सैकड़ों लोग अच्छे होते हैं। हवा और उजालेका आवागमन ठीक रूपसे होता रहे, इसके लिए हमें अपने रहने के स्थानोंके दरवाजे और खिड़कियाँ रात-दिन खुली रखनी चाहिए।

ऊपरके लेखको पढ़कर कुछ लोगोंको ऐसी कुछ शंका हो सकती है कि यदि हवा और उजालेकी इतनी अधिक जरूरत है, तो ऐसे बहुतेरे लोगोंको, जो अपनी