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श्री गोखले देशमें


कोठरी में ही पड़े रहा करते हैं, किसी प्रकारका नुकसान क्यों नहीं होता। ऐसी शंका करनेवाले लोगोंने ठीक विचार नहीं किया, ऐसा कहा जायेगा। ज्यों-त्यों जीवन-निर्वाह कर लेना हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारा उद्देश्य तो यह है कि सम्पूर्ण आरोग्यका जीवन जिया जाये। यह भली-भाँति सिद्ध किया जा चुका है कि जहाँ लोग कम हवा और कम उजाला ले पाते हैं, वहाँ वे बीमार हो जाते हैं। शहरके लोग ग्रामीणोंकी अपेक्षा नाजुक होते हैं। कारण यह है कि शहरके लोगोंको हवा और उजाला कम मात्रामें मिलते हैं। डर्बनमें हमारे लोगोंको क्षय आदि रोग विशेष रूपसे हैं। इसका कारण डर्बनका सरकारी डॉक्टर बतलाता है कि हम लोग ऐसी स्थितिमें रहते हैं जिसमें हमें स्वच्छ हवा नहीं मिलती या हम उसके लिए प्रयत्न ही नहीं करते। हवाका और उजालेका विषय आरोग्यकी दृष्टिसे महत्वपूर्ण है और उसे प्रत्येक व्यक्तिको ध्यानपूर्वक समझ लेना चाहिए।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, १५-२-१९१३

३४६. श्री गोखले देशमें

श्री गोखलेने देशमें हमारे सम्बन्धमें तीन उल्लेखनीय भाषण दिये हैं। इनका विवरण और उनपर की गई टीकाएँ हमें देशसे अभी मिली हैं। ये भाषण बम्बई और पूनामें तथा बाँकीपुरके कांग्रेस अधिवेशनमें दिये गये थे। इनमें से कांग्रेस में दिया गया भाषण सबसे अच्छा माना गया है। कहा जाता है कि वह एक घंटे तक चला और लोगोंने उसे तन्मय होकर सुना। श्री गोखले जब बम्बई में उतरे तब वहाँ उन्होंने दो पक्ष देखें। इनमें से एक पक्षके नेता सर फीरोजशाह [मेहता][१] थे। उस पक्षकी मान्यता थी कि श्री गोखले तो भारतके हकोंकी बलि दे आये हैं और उन्होंने श्री गांधीका किया हुआ समझौता स्वीकार करके ठीक नहीं किया है। एक लेखकने तो यहाँ तक टीका की कि दक्षिण आफ्रिकाको भेजा गया सब रुपया व्यर्थ चला गया। इस पक्षका कहना था कि कानूनमें तो भारतीयोंके हकोंकी रक्षा होनी ही चाहिए थी; इसके सिवा श्री गोखलेको दक्षिण आफ्रिकामें चाहे जिस भारतीय और चाहे जितने भारतीयोंके जानेकी छूट भी माँगनी थी। इस पक्षकी मान्यता यह भी थी कि यदि भारतीयोंको ऐसी छूट न मिले और परिणामस्वरूप उन्हें दक्षिण आफ्रिका छोड़ना पड़े तो भी कोई बात नहीं। यह पक्ष बहुत ही छोटा है। यह बात बम्बई और पूनाकी तथा कांग्रेसकी उन सभाओंसे सिद्ध हो जाती है, जिनमें श्री गोखले

  1. सर फीरोजशाह मेरवानजी मेहता; आरम्भसे ही कांग्रेससे सम्बन्धित; सन् १८९० में कलकत्ता में कांग्रेसके छठवें अधिवेशनके अध्यक्ष; १९०९ में कांग्रेसके चौबीसवें अधिवेशनके अध्यक्ष भी चुने गये, किन्तु उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया; गांधीजीसे पहली भेंट १८९६ में; दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंके प्रश्नपर गांधीजीका भाषण सुननेके लिए बम्बईकी सभाका आयोजन उन्होंने किया था।