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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-८]


इस प्रकार जो वस्तु हमारे लिए इतने महत्वकी है, उसके प्रति हम बहुत कम सावधानी बरतते हैं। महामारी आदि बीमारियाँ हवाके प्रति हमारी लापरवाहियोंके कारण ही हमें आ धरती हैं। पानीके प्रति लापरवाही करनेके कारण भी ऐसे ही परिणाम होते हैं। युद्धमें व्यस्त सेनामें अनेक बार काला ज्वर फूट पड़ता है। यह साबित हो चुका है कि इसका कारण पानीका दूषित होना है; क्योंकि लड़ाईमें सेनाको जहाँ जैसा पानी मिल जाये, पीना पड़ता है। शहरमें रहनेवाले लोगोंमें भी अनेक बार इसी प्रकारके बुखार आदि फैल जाते हैं। उनका कारण भी प्रायः पानीकी खराबी ही होती है। खराब पानी पीनेसे कई बार पथरीका रोग भी हो जाता है।

पानीके खराब होने के दो कारण होते हैं। एक तो किसी प्रदेशकी स्वाभाविक स्थिति के कारण वहाँका पानी ही विशुद्ध न रहे, और दूसरा यह कि हम पानीको दूषित कर दें। जिस स्थानमें पानी खराब ही होता हो या निकलता हो, उस स्थानका पानी तो कदापि नहीं पीना चाहिए। और प्रायः हम उसे पीते भी नहीं हैं। किन्तु जिस जलको हम अपनी लापरवाहीके कारण दूषित कर देते हैं उसे पीते हुए हम नहीं हिचकते। जैसे कि नदियोंमें हम प्रायः हर प्रकारकी चीजें फेंक दिया करते हैं और फिर उसी जलको पीने और नहाने के काममें लेते हैं। नियम तो यह होना चाहिए कि जिस स्थानपर हम स्नान आदि करते हैं, उस स्थानके जलका हम कभी पीनेके लिए उपयोग न करें। नदियोंका जल हमेशा जिस दिशासे बहता हो और जिस दिशामें कोई स्नानादि नहीं करता हो, वहींसे लेना चाहिए। इस दृष्टिसे हरएक गाँव नदीके दो विभाग कर देने चाहिए - प्रवाहके नीचेकी ओरका भाग नहाने-धोनेके लिए, और प्रवाहके ऊपरका भाग पीनेके लिए। सेना आदि जब जलके नजदीक छावनियाँ डालती हैं, तब एक विशेष व्यक्ति नदियोंके प्रवाहकी जाँच करके किनारेपर एक झण्डी खड़ी करता है और उसके ऊपरी भागके प्रवाहकी ओरका जल यदि कोई नहाने-धोनेके लिए उपयोग में लाता है, तो उसे सजा होती है। हमारे देशमें जहाँ इस प्रकारकी व्यवस्था नहीं है, वहाँ परिश्रमी स्त्रियाँ अनेक बार छोटे-छोटे गढ़े खोदकर उनमें से पानी भरती हैं। यह प्रथा बहुत ही अच्छी है, क्योंकि ऐसा करनेसे पानी रेतमें से छन-छन कर आता है। कुऍके जलमें अनेक बार बहुत-से खतरे हुआ करते हैं। जो कुएँ कम गहरे हैं, उनमें जमीनकी सतहपर की गन्दगी आदि रिसकर जा मिलती है। अनेक बार उनमें पक्षी भी गिरकर मर जाते हैं। कई बार पक्षी अपने घोंसले भी उनमें बनाते हैं और यदि कुएँ ठीक ढंगसे बँध हुए न हों, तो उनमें पानी खींचनेवालोंके पैरोंका मैल भी गिरता रहकर पानीको खराब कर देता है। इसलिए कुएँके जलको पीनेमें विशेष सावधानीकी जरूरत है। टंकियों में भरा हुआ पानी तो प्रायः खराब होता है। टंकियोंके पानीको शुद्ध रखनेके लिए समय-समयपर उनकी सफाईका ध्यान रखना चाहिए; उन्हें ढक कर रखना चाहिए और छत आदि स्थान, जहाँसे उनमें पानी आता है, साफ रखे जाने चाहिए। लेकिन इस प्रकारकी स्वच्छता रखनेका प्रयत्न थोड़े ही लोग करते हैं। अतः पानीके दोषोंको भरसक दूर करने का सुनहरा नियम तो यह है कि पानीको आधे घंटे तक उबाला जाये और ठण्डा होनेपर उसे बिना हिलाये दूसरे बर्तनमें ले लिया जाये और फिर

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