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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


किसी तीसरे बर्तनमें एक अच्छे बड़े और साफ कपड़ेसे छानकर पिया जाये। ऐसा करनेवाला मनुष्य भी अपने उस कर्त्तव्य से मुक्त नहीं हो पाता, जो उसे दूसरोंके प्रति पालन करना है। जो जल सार्वजनिक उपयोगके लिए है, वह हमारी तुम्हारी और उस मुहल्लेमें या गाँव में रहनेवाले सभीकी मिल्कियत है। हर व्यक्ति इस मिल्कियतका उपयोग ट्रस्टीकी तरह करनेके लिए बँधा हुआ है, इसलिए किसीके हाथों कोई ऐसा काम तो होना ही नहीं चाहिए जिससे पानी दूषित हो जाये। नदी या कुओंको खराब नहीं किया जाना चाहिए। पीनेके हिस्सेवाले पानीका नहाने या धोने में उपयोग नहीं करना चाहिए। उसके आसपास न मल-मूत्र आदिका त्याग किया जा सकता है, ओर न मुर्दोंका दाह-संस्कार अथवा उनकी भस्म आदिका उसमें विसर्जन ही।

इस प्रकार पानीकी बहुत सार-संभाल रखें तो भी एकदम शुद्ध जल नहीं मिल पाता। उसमें क्षार आदिकी मात्रा होती है और अनेक बार सड़ी हुई वनस्पतियोंका अंश भी होता है। वर्षाका जल सर्वाधिक शुद्ध माना जाता है। किन्तु हमारे पास पहुँचते-पहुँचते उसमें हवामें व्याप्त रजकण आदि मिल जाते हैं। शरीरपर शुद्ध जलके परिणामकी बात ही और है। यह जानकर ही अनेक अंग्रेज डॉक्टर अपने बीमारोंको "डिस्टिल्ड" या शुद्ध किया हुआ पानी देते हैं। यह पानी भाप द्वारा बनाया जाता है। जिन लोगोंको कब्जियत आदि रोग हों, वे यदि "डिस्टिल्ड" पानीका उपयोग करें, तो उन्हें इसका प्रत्यक्ष अनुभव हो सकेगा। सभी विलायती दवा बेचनेवाले (केमिस्ट) यह शुद्ध पानी बेचते हैं। "डिस्टिल्ड " जल और उसके उपायोंपर हालमें ही एक पुस्तक लिखी गई है। पुस्तकके लेखकका यह विश्वास है कि यदि उक्त ढंगसे शुद्ध किये हुए जलका प्रयोग किया जाये, तो अनेक रोग दूर हो सकते हैं। हो सकता है, इसमें अतिशयोक्ति हो, तो भी उसमें सन्देह करनेकी कोई खास बात नहीं है कि एकदम शुद्ध किये हुए जलका परिणाम शरीरपर खूब अच्छा होता है।

पानीके दो प्रकार हैं - एक खारा या भारी और दूसरा मीठा और हल्का। यह बात सभी नहीं जानते, किन्तु है जानने योग्य। खारे पानीमें साबुनका झाग नहीं बनता। इसका अर्थ यह है कि उस पानीमें क्षारकी मात्रा अधिक है। जिस प्रकार खारे पानी में साबुनका उपयोग ठीक नहीं हो पाता, उसी प्रकार भारी पानीमें भी उसका उपयोग कठिन होता है। खारे पानीमें अनाज भी बड़ी मुश्किलसे पकता है। ठीक इसी आधारपर भारी पानी भोजन पचाने में बाधक हो सकता है और होता है। खारा पानी अरुचिकर और हल्का पानी या तो मीठा होता है या उसका कोई स्वाद नहीं होता। कुछ लोगोंका अभिप्राय यह भी है कि भारी पानीमें पोषक द्रव्य होते हैं और इसलिए उस जलका उपयोग फायदेमन्द है। किन्तु कुल मिलाकर तो यही देखने में आता है कि हल्के पानीका उपयोग ही उचित है। वर्षा जल सर्वाधिक शुद्ध जल होता है। वह तो हल्का ही होता है और सभी लोग उसका उपयोग भी ठीक मानते हैं। भारी जलको भी उबालकर आधे घंटे तक चूल्हेपर रहने दिया जाये, तो वह हल्का हो जाता है। उबालकर उसे, जैसा कि हम पहले कह आये हैं, निथार और छान लेना चाहिए।