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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-८]


पानी कब और कितना पीना चाहिए, अनेक बार यह सवाल भी किया जाता है। इसका सीधा-सा जवाब तो यह है कि जब प्यास लगे तब और जितना भाये उतना पानी पीना चाहिए। खाते हुए पीने में भी कोई खास बाधा नहीं है, और न खानेके बाद पीने में ही है। खाते समय पानी पीनेवालेको इतना-भर याद रखना चाहिए कि पानी कदापि मुँहका कौर जल्दी निगल सकनेके खयालसे न पिया जाये। मुँहका कौर यदि स्वयं ही गलेसे नीचे नहीं उतरता तो या तो वह ठीकसे चबाया नहीं गया है, या हमारी जठराग्निको उसकी जरूरत नहीं है।

वैसे तो एक बड़ी हद तक पानी पीनेकी जरूरत भी नहीं होनी चाहिए। जिस प्रकार हमारे शरीरको बनावटमें ७० प्रतिशत से भी अधिक पानी है, ठीक उसी प्रकार भोजन में भी है। कुछ खाद्य पदार्थों में तो ७० प्रतिशतसे भी बहुत अधिक मात्रामें पानी होता है। ऐसे खाद्य नहीं हैं कि जिनमें बिलकुल ही पानी न हो। फिर, जो भोजन हम पकाते हैं, उसमें तो पानी बहुतायतसे काममें लिया जाता है। इसके बाद भी पानी की जरूरत क्यों पड़ती है, इसका ठीक जवाब तो भोजनके स्वभाव और परिमाणसे मिल सकेगा। साधारण रूपसे यहाँ इतना कहा जा सकता है कि जिसकी खुराक में झूठी प्यास पैदा करनेवाली मिर्च, मसाले आदि वस्तुएँ नहीं होती उसे पानी कम मात्रामें ही पीना पड़ता है। जो अपनी खुराक मुख्यतः ताजे मेवोंसे प्राप्त करते हैं, उन्हें पानी पीनेकी कम आवश्यकता होना उचित ही है। जिस मनुष्यको अकारण ही सदैव बहुत प्यास लगा करती हो, उसे प्यासकी बीमारी है, यही समझना चाहिए।

कुछ लोगोंको, वे चाहे जैसा पानी क्यों न पियें, कुछ नुकसान नहीं होता। दूसरे अनेक लोग भी बिना समझे ऐसा ही करने लगते हैं। यदि पूछिए कि नुकसान क्यों नहीं होता तो इस प्रश्नका जवाब भी ठीक वही है जो हवाके प्रकरण में दिया जा चुका है। हमारे शरीरके खूनमें कुछ ऐसी जबरदस्त शक्ति होती है कि वह कई तरहके जहरोंको नष्ट कर देती है। किन्तु जैसे किसी अच्छी तलवारकी धार लगा-तार उपयोग करने और उसे सानपर न धरनसे भोथरी हो जाती है उसी प्रकार यदि हम खूनसे अपनी चौकीदारीका काम लें और उसकी हिफाजत न करें, तो उसकी शक्ति नष्ट होते-होते अन्तमें वह बिलकुल खराब हो जाता है। इसमें आश्चर्यकी कोई बात नहीं है। यदि हम हमेशा खराब पानीका सेवन करें, तो अन्तमें हमारा खून अपना काम नहीं कर सकेगा।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, २२-२-१९१३