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३४८. पत्र : एच० एल० पॉलको

जोहानिसबर्ग
फरवरी २५, १९१३

प्रिय श्री पॉल,

हाँ, मैं सचमुच काममें डूबा हुआ हूँ। मैं कुमारी एन० को सब बातोंसे अवगत रख रहा हूँ।

श्री सेरिजके बारेमें, मुझे दुःख है, अभी कुछ नहीं किया जा सकता। यहाँ कोई ढंगका भारतीय स्कूल नहीं है। किन्तु मेरा सुझाव है कि वे अपनी अर्जी वहाँके अधीक्षक (सुपरिन्टेंडेंट) की मार्फत भेजें। और यदि अधीक्षक उसपर जोरदार सिफारिश लिख दे तो मौका आनेपर श्री एस० के लिए काम मिल जानेकी खासी गुंजाइश हो सकती है।

मुझे दुःख है कि आप अभीतक उसी दुखी मनःस्थितिमें[१] हैं। आपको उससे मुक्त होनेकी कोशिश करनी चाहिए। दुःख मनुष्यको निराश बनानेके लिए नहीं, सावधान बनानेके लिए आते हैं।

आपका ही,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी प्रतिलिपि (सी० डब्ल्यू ० ४९०२ ) से।

सौजन्य : यूजिन जोज़ेफ पॉल, पीटरमैरित्सबर्ग।

३४९. जोहानिसबर्गकी पाठशाला

इस पाठशालाको खुले अभी बहुत समय नहीं हुआ कि इतनेमें ही बाधा आ गई। जान पड़ती है। सभीका खयाल था कि पाठशाला में पढ़ाईके घटोंमें तमिल और गुजराती सिखाई जायेंगी। अब यह सुनने में आ रहा है कि तमिलकी पढ़ाई पाठशालाके समय में नहीं होगी, उसके लिए कोई दूसरा समय दिया जायेगा। इसका अर्थ यह हुआ कि तमिल नहीं पढ़ाई जायेगी। यदि सरकार ऐसा करेगी तो यह बड़ा अन्याय होगा। स्कूल निकाय (बोर्ड) के सदस्यके साथ गोखलेकी जो बात हुई थी, उसमें उसने स्पष्ट वचन दिया था कि यदि पाठशाला में एक अच्छी संख्या में किसी भारतीय भाषाको बोलनेवाले छात्र दाखिल होंगे तो सरकार उन्हें उस भारतीय भाषाको पढ़ानेकी व्यवस्था करेगी। तमिल भारतकी एक महत्वपूर्ण भाषा है। उस भाषाको जाननेवाले बच्चे

  1. श्री एच० एल० पॉल अपने पुत्र क्लेमेंटकी मृत्युके बाद बड़े दुःखी हो गये थे।