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३५१. पत्र : गृह-सचिवको[१]

मार्च ४, १९१३

आपका गत माहकी २४ तारीखका कृपापत्र मिला[२], जिसमें आपने बन्दरगाहपर भारतसे आये उन ब्रिटिश भारतीयोंके सम्बन्धमें अपनाई गई कार्य-पद्धतिके विषय में लिखा है, जिन्हें ट्रान्सवालमें निवास सम्बन्धी अधिकार प्राप्त हैं।

मेरे संघकी नम्र सम्मतिमें यह उत्तर अत्यन्त असन्तोषजनक है, क्योंकि इसमें बन्दरगाहपर जो वास्तविक वस्तुस्थिति है उसकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है।

आपके पत्रोंका आशय ऐसा जान पड़ता है कि भारतीय यात्री ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके असमर्थित दावे लेकर भारतसे यहाँ आते हैं, और ऐसे लोगोंको, पंजीयक द्वारा मामलेकी जाँच की जानेतक जहाजपर रोक रखा जाता है। यदि असमर्थित दावेवाले लोग किसी उल्लेखनीय संख्या में आते और उन्हें संघकी सीमाके भीतर नजरबन्दीमें भी रहने दिया जाता, तो मेरे संघको कोई शिकायत नहीं होती। किन्तु, मेरे संघका अनुभव यह रहा है कि आम तौरपर असमर्थित दावेवाले भारतीय एक तो आते ही नहीं हैं और यदि आते भी हैं तो उन्हें नजरबन्द नहीं रखा जाता, बल्कि वे जिस जहाजसे आते हैं उसीसे वापस भेज दिये जाते हैं।

जहाँतक दयाल-बन्धुओंका सवाल है, मन्त्री महोदय अच्छी तरह जानते हैं कि यद्यपि उनके पास अपने दावे सिद्ध करनेके सभी प्रमाण मौजूद थे, तो भी यदि सर्वोच्च न्यायालयाने हस्तक्षेप न किया होता[३], तो उन दोनों लड़कों को वापस भेज दिया जाता। मेरे संघका निवेदन यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने जो राहत दी है, वह राहत ऐसे प्रार्थियोंको सर्वोच्च न्यायालयकी शरणमें हस्तक्षेपकी माँग करनेके लिए गये बिना ही दे देनी चाहिए।

  1. इस पत्रका मसविदा अनुमानतः गांधीजी द्वारा तैयार किया गया था।
  2. यह पत्र ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष द्वारा लिखे गये एक पत्रके उत्तरमें भेजा गया था। अध्यक्षने अपने पत्र में यह अनुरोध किया था कि भारतसे आनेवाले और ट्रान्सवालमें निवासके अधिकारका दावा करनेवाले भारतीयोंको उस बन्दरगाहपर, जिससे होकर वे उपनिवेश में पहुँचते हैं, जमानत लेकर निकासी अनुमतिपत्र दे दिये जाने चाहिए, ताकि वे अपने दावे सिद्ध कर सकें। उत्तरमें उप-सचिवने लिखा कि नेटालमें ऐसे लोगोंको शीघ्रातिशीघ्र उतरने देनेका प्रबन्ध है जिनके पास अपने दावेके समर्थनमें पर्याप्त प्रमाण मौजूद हों, किन्तु जिन लोगों के पास ऐसे प्रमाण मौजूद नहीं रहते, उन्हें तबतक जहाजपर ही रोक रखा जाता है जबतक कि पंजीयक उनके दावेको स्वीकार नहीं कर ले। इस सम्बन्धमें दावेदारों को अपने मामले पेश करनेकी हर सम्भव सुविधा दी जाती है, और यदि भारतीय ऐसे कागजातके बगैर ही चले आते हैं, जिनके बलपर उन्हें प्रवेश मिलता तो अपनी परेशानियोंके जिम्मेदार स्वयं वे ही हैं। इंडियन ओपिनियन, ८-३-१९१३
  3. देखिए पाद-टिप्पणी १, पृष्ठ ४२८।