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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अपनी स्थितिको और अधिक स्पष्ट करनेकी दृष्टिसे मेरे संघके लिए शायद यह बता देना आवश्यक है कि किन वर्गोंके लोगोंको ट्रान्सवालमें प्रवेशका अधिकार है।

प्रवेशके अधिकारी भारतीयोंका एक वर्ग वह है जो एशियाई अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत है और जिसे पंजीयन प्रमाणपत्र प्राप्त हैं। इस वर्गके भारतीय ऐसे कागजात पेश कर सकते हैं, जिनसे इनका ट्रान्सवालमें रहनेका अधिकार सिद्ध हो जाये।

दूसरा वर्ग ऐसे भारतीयोंका है जो अभी पंजीकृत तो नहीं है, किन्तु जिन्हें अपना पंजीयन करानेका अधिकार है।[१] इन लोगोंमें से सभीके पास कागजी प्रमाण होना सम्भव नहीं - और विशेषकर ऐसे कागजी प्रमाण तो उनके पास कभी हो ही नहीं सकते, जिन्हें बन्दरगाह प्रवासी अधिकारी ठीकसे जाँच-परख सकें। कारण यह है कि इनमें से अधिकांश ट्रान्सवालमें रहनेवाले लोगोंके साक्ष्य के आधारपर ही अपने दावोंका समर्थन कर सकते हैं। ऐसी ही बात दयाल-बन्धुओंके साथ भी थी। उनका पंजीयनका अधिकार इस तथ्यपर आधारित था कि वे ३१ मई, १९०२को ट्रान्सवालमें उपस्थित थे। मेरे संघका कहना कि जबतक उन्हें वह सबूत प्रस्तुत करनेकी सुविधा नहीं दी जाती जो सिर्फ दक्षिण आफ्रिका में ही उपलब्ध था तबतक उनके लिए अपना दावा सिद्ध करना असम्भव था, और मेरा संघ ऐसे ही लोगोंके लिए सुरक्षाकी माँग करता है। बन्दरगाह प्रवासी अधिकारी अबतक निर्दयतापूर्वक यह सुरक्षा देनेसे इनकार करते रहे हैं और भारतीयोंको इससे बड़ी परेशानी उठानी पड़ी है। मेरे संघको विश्वास है कि उसने जिस राहतकी प्रार्थना की है, वह दे दी जायेगी।

अ० मु० काछलिया
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १५ -३ - १९१३

३५२. स्वागत[२]

अपने देशबन्धुओंके साथ हम भी श्री हाजी दाउद मुहम्मदका हार्दिक स्वागत करते हैं। पवित्र मक्काकी यात्रा करना और "हाजी" कहलाना एक निष्ठावान मुसलमानकी सबसे प्रिय कामना होती है। श्री हाजी दाउद मुहम्मद अपनी कामना पूरी करके अपने देशबन्धुओंकी सेवा करनेके लिए अपने अंगीकृत देशमें लौट आये हैं। हम उनके दीर्घ जीवन तथा उनके दुस्साध्य कार्य में सफलताकी कामना करते हैं।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, ८-३-१९१३

  1. अस्थायी समझौते के अन्तर्गत गांधीजी जिन वर्गोंके भारतीयोंको पंजीयनके पात्र मानते थे उनके लिए देखिए "पत्र : ६० एफ० सी० लेनको", पृष्ठ ५८-६०।
  2. भाषण : "हाजियोंकी विदाई सभामें," पृष्ठ २७०-७१ और "श्री दाउद मुहम्मद", पृष्ठ २७२ भी।