पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 11.pdf/५१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

३५३. गोगाका मामला

श्री गोगा फिर हार गये।[१] फिर भी हम श्री गोगाको विजयी मानते हैं। उनके अथक प्रयत्नके लिए हम उन्हें बधाई देते हैं। हमें विश्वास है कि यदि वे अन्ततक लड़ते रहे तो अवश्य जीतेंगे। उन्होंने एक बार फिर परवाना निकाय (लाइसेंसिंग बोर्ड) के फैसलेके खिलाफ अपील कर दी है। सम्भव है कि सर्वोच्च न्यायालयका फैसला भी उनके विरुद्ध हो। हम श्री गोगाको सलाह देंगे कि यदि वे यहाँ हार जायें तो ब्लूमफाँटीन [कोर्टमें] पहुँचें और यदि वहाँ भी हारें तो इंग्लैंडकी प्रोवी कौंसिल तक जायें। इस बीच दूसरे भारतीयोंके लिए उचित यह होगा कि वे श्री गोगाको प्रोत्साहन दें और सभाएँ करके सरकारको अर्जी भेजें। ऐसे मामलेको लेकर सत्याग्रह भी किया जा सकता है। यदि हममें समझ हो तो ऐसे मामलोंको इकट्ठा करके उनके बारेमें शहर-शहरमें सार्वजनिक सभाएँ की जायें और सरकारको बताया जाये कि जबतक परवाना अधिनियम (लाइसेंसिंग एक्ट) रद नहीं किया जाता अथवा उसमें संशोधन नहीं किया जाता तबतक न तो भारतीय शान्त बैठेंगे और न सरकारको शान्त बैठने देंगे।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, ८-३-१९१३

३५४. भवानीदयालका मामला[२]

इस मामले में जोहानिसबर्गका ब्रिटिश भारतीय संघ अभी लड़ ही रहा है। सरकारका पिछला पत्रक[३] अच्छा नहीं कहा जा सकता। उससे इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रवासी अधिकारी सरकारको पूरी जानकारी नहीं देते और सरकार पूरी जानकारी पाना भी नहीं चाहती। यदि उसने पूरी जानकारी प्राप्त की होती तो अपने पिछले पत्रकमें उसने जो अज्ञान प्रकट किया है, वह दिखाई न देता। सरकार भूल जाती है कि जो प्रवासी भारतसे आते हैं, प्रवासी अधिकारी सन्तोष न होने पर उन्हें जहाजसे

  1. एम० ए० गोगा लेडीस्मिथके व्यापारी थे। स्थानीय व्यापार मण्डलके उज्रपर बॉरो परवाना कार्यालयने उनका परवाना उनके तथा उनके पुत्रके नाम हस्तान्तरित करनेसे इनकार कर दिया था। परन्तु अपील करनेपर न्याय-मण्डलने इस कार्यवाहीको अवैध घोषित किया और व्यापार मण्डलको मामलेका पूरा खर्च (५९ पौंड) भरना पड़ा। श्री गोगाकी परवाना-हस्तान्तरणकी अर्जीकी पुनः सुनवाई की जानेपर परवाना अधिकारीने उसे खारिज कर दिया और अपीलमें बोरो परवाना निकायने परवाना अधिकारीका निर्णय बहाल रखा। श्री गोगाके व्यापारी परवानोंके मामलेोके सम्बन्धमें देखिए खण्ड ६, पृष्ठ ३६५, ३७७ और खण्ड ९, पृष्ठ ३४४-४५ तथा खण्ड १०, पृष्ठ ३२७।
  2. देखिए पाद टिप्पणी १, पृष्ठ ४२८ और "पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ ४७३-७४।
  3. देखिए पाद टिप्पणी १, पृष्ठ ४२८ और "पत्र : गृह-सचिवको", पृष्ठ ४७३-७४।