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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


नहीं उतरने देते; इतना ही नहीं बल्कि निर्वासित कर देते हैं। सरकार शायद यह समझे हुए है कि ऐसे भारतीयोंको जहाजोंपर ही नजरबन्द रखा जाता है। यदि उन्हें जहाजसे न उतरने देकर वहीं नजरबन्द रख लिया जाये तो हमें जो बेहद खर्च और तकलीफ उठानी पड़ती है, हम उससे बच जायें। अब श्री काछलियाके पत्रसे[१] यह सब स्पष्ट हो गया है। सरकार के लिए इसका जवाब देना मुश्किल होगा या फिर उसे यह स्वीकार करना पड़ेगा कि उसकी नीयत पुराने लोगोंको भी परेशान करनेकी है। श्री पोलकने इस मामले में सरकारसे खर्चकी माँग की है। वह मिले या न मिले; लेकिन सरकार यह तो जान सकेगी कि उसके ऐसे जुल्मकी बात सारे ब्रिटिश साम्राज्य में फैलाई जा सकती है।

[गुजरातीसे]

इंडियन ओपिनियन, ८-३-१९१३

३५५. आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१०]

[खुराक-चालू]

कौन-सी खुराक ली जाये, इसका विचार करनेसे पूर्व हम कौन-सी खुराक न ली जाये, इसे देख लें। जो कुछ मुँहके जरिये हमारे शरीरमें जाता है, उसे यदि आहारका नाम दे दें तो शराब, बीड़ी, तम्बाकू, भाँग, चाय, कॉफी, मसाले आदि वस्तुएँ भी आहार ही हैं।

लेखकका अनुभव-सिद्ध मत है कि उक्त सभी आहार त्याग देने योग्य हैं। इनमें से कई वस्तुओंका अनुभव तो उसने स्वयं लिया है और कुछके विषयमें दूसरोंका अनुभव देखा और जाना है।

शराब और भाँगके विषयमें तो लिखना ही क्या है? प्रत्येक धर्ममें ये वस्तुएँ दूषित मानी गई हैं। शायद ही कोई होगा जो इनके सेवनके पक्षमें होगा। शराबसे अनेक कुटुम्बोंका सत्यानाश हो गया है। लाखों शराबी पामाल हो चुके हैं। शराबीको कोई होश-हवास नहीं रहता। अनेक बार तो वह माँ और पत्नीके बीच भेद करना भी भूल जाता है। इस व्यसनके परिणामस्वरूप मनुष्यका जठर जल जाता है और वह पृथ्वीपर भाररूप बनकर ही जीता है। शराबी नालियोंमें पड़े नजर आते हैं। अच्छे माने जानेवाले लोग शराब पी लेनेपर दो कौड़ीके बन जाते हैं। यह स्थिति केवल शराब पीनेकी हालतमें ही होती है, यह बात नहीं है। देखा गया है कि इस व्यसनसे जकड़ा हुआ मनुष्य होश-हवासमें रहनेपर भी निःसत्व-सा ही रहता है। अपने मनपर उसका कब्जा नहीं होता; उसका मन एक बच्चेकी तरह चंचल बना रहता है। शराब और इसी कोटिमें आनेवाली वस्तु, भाँग एकदम त्याज्य वस्तुएँ हैं। इस सम्बन्धमें मतभेद होनेकी गुंजाइश नहीं है। कुछ लोगोंका ऐसा खयाल है कि दवाके तौरपर शराब ली जा सकती है; पर वास्तवमें यह भी जरूरी नहीं है।

  1. देखिए "पत्र : गृह सचिवको", पृष्ठ ४७३-७४।