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आरोग्यके सम्बन्धमें सामान्य ज्ञान [-१०]


यह बात यूरोपके, जो शराबका घर ही है, डॉक्टर लोग भी कहते हैं। शुरू में तो अनेक बीमारियोंपर शराबका उपयोग होता था, लेकिन अब यह बन्द हो गया है। वैसे यह दलील पेश करनेवालोंकी नीयत साफ नहीं होती। शराबके हिमायती यह कहकर कुछ ऐसी बात कहना चाहते हैं कि यदि उसका उपयोग दवामें किया जा सकता है तो फिर पीनेमें उसका इस्तेमाल करनेमें आपत्ति क्यों होनी चाहिए। प्रायः जमालगोटा आदि दवाके तौरपर उपयोगमें लिये जाते हैं, लेकिन इस कारण भोजनके तौरपर उनका उपयोग करनेका विचार कोई नहीं कर सकता। हो सकता है कि किसी-किसी बीमारीमें शराब से फायदा होता होगा, किन्तु शराबसे इतना नुकसान पहुँच चुका है कि हर विचारशील मनुष्यका यह कर्त्तव्य है कि उसके प्राण क्यों न चले जायें, वह दवाके तौरपर भी शराबका उपयोग न करे। यदि शराबसे इस शरीरकी रक्षा करनेके परिणामस्वरूप सैकड़ों मनुष्योंका अकल्याण हो, तो इस शरीरको नष्ट हो जाने देना ही अपना फर्ज है। हिन्दुस्तान में लाखों मनुष्य ऐसे हैं जो वैद्योंकी सलाहके बावजूद शराबका सेवन नहीं करते। वे लोग शराब पीकर अथवा जो-जो वस्तुएँ निषिद्ध मानी जाती हैं, उनका सेवन करके जीना स्वीकार नहीं करते। अफीमके वशीभूत होकर चीनकी महान जनता अपना स्वतन्त्र राज्य होते हुए भी बड़ी द्रुत गति से नष्ट होती जा रही है। अफीमकी लत हो जानेसे हमारे कितने ही राजवंशी जमींदार अपनी जायदाद खो बैठे हैं।

साधारण पाठक जिस प्रकार शराब, भाँग और अफीमके खराब होनेकी बातको सहज ही समझ लेगा, बीड़ी और तम्बाकू के सम्बन्धमें वह उसे उतनी आसानीसे नहीं समझ पायेगा। बीड़ी और तम्बाकूने मनुष्य मात्रपर अपनी सत्ता कुछ इस तरह जमा रखी है कि उसे नष्ट करनेमें एक जमाना लग जाना सम्भव है। छोटे और बड़े सभी इसकी लपेटमें आ गये हैं। इतना ही नहीं, नीतिवान कहे जानेवाले मनुष्य भी बीड़ीका उपयोग करते हैं। इसके प्रयोगमें तो किसी प्रकारकी शर्म मानी ही नहीं जाती। यह मित्रोंके स्वागतका एक भारी साधन है। इसका प्रचार कम होनेके स्थानपर बढ़ता ही जा रहा है। साधारण मनुष्यको तो इस बातकी खबर भी नहीं है कि बीड़ीके व्यसनकी जड़ें जमानेके लिए बीड़ीके व्यापारी उसके बनते समय क्या कुछ करते रहते हैं। तम्बाकूमें अनेक प्रकारके खूशबूदार पदार्थ और अफीमका पानी आदि छिड़का जाता है। इन तरकीबोंके कारण बीड़ी हमपर अधिकाधिक अधिकार करती जाती है। उसके प्रचार-प्रसार करनेके लिए हजारों पौंड विज्ञापनोंमें खर्च किये जाते हैं। बीड़ीका व्यवसाय करनेवाली कम्पनियाँ यूरोपमें अपने छापाखाने चलाती हैं, सिनेमा खरीदती हैं, अनेक प्रकारके इनाम बाँटती हैं, पुस्तकालय चलाती हैं और विज्ञापनों में पानीकी तरह पैसा बहाती हैं। इन सबका परिणाम यह हुआ है कि स्त्रियाँ भी बीड़ी पीने लग गई हैं। बीड़ियोंकी तारीफमें कविताएँ भी लिखवाई गई हैं, [जिनमें कई बार] बीड़ीको गरीबके दोस्तकी उपमा दी गई है।

बीड़ी और तम्बाकूसे जो हानियाँ हुई हैं, उनका अनुमान नहीं लगाया जा सकता। बीड़ी पीनेवाले लोगोंकी भावनाएँ कुछ ऐसी कुण्ठित हो जाती हैं कि वे