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सम्पूर्ण गांधी वाड्मय


लापरवाहीसे दूसरेके घरमें प्रायः बिना इजाजतके बीड़ी जला लेते हैं। उन्हें किसीकी शर्म नहीं होती।

यह भी देखा गया है कि बीड़ी और तम्बाकू पीनेवाले मनुष्य इन्हें पानेके लिए अनेक दूसरे गुनाह करते रहते हैं। बच्चे घरसे पैसे चुराते हैं और जेल में कैदी लोग बड़ी जोखिम उठाकर भी चोरी-चोरी बीड़ियोंका संग्रह करते हैं। खाने-पीनेकी दूसरी चीजों के बिना काम चल जाता है, किन्तु बीड़ीके बिना नहीं चल पाता। युद्धमें भी जिन्हें बीड़ीकी आदत है उन सैनिकोंको यदि बीड़ी न मिले, तो वे ढीले पड़ जाते हैं और उनसे कुछ करते-घरते नहीं बनता।

बीड़ीके सम्बन्ध में स्व० टॉल्स्टॉय लिख गये हैं कि एक मनुष्यके मनमें अपनी प्रेयसीका खून करनेका विचार आया। उसने चाकू निकाला और वार करनेपर तैयार हुआ; किन्तु फिर हिचकिचाकर लौट आया और बीड़ी पीने बैठ गया। ज्यों ही बीड़ीका धुआँ उसके मगजमें पैठा कि उसके जहरसे उसकी बुद्धि आक्रान्त हो गई और वह खून कर बैठा। टॉल्स्टॉयकी यह निश्चित धारणा थी कि बीड़ीका नशा इतना सूक्ष्म है कि कुछ हद तक तो यह शराब से भी अधिक हानिकर माना जाना चाहिए।

बीड़ीका खर्च भी कुछ ऐसा-वैसा नहीं है। सभी बीड़ी पीनेवालोंको अपनी-अपनी हैसियतके परिणाममें उसका खर्च भारी पड़ता है। कई लोग बीड़ीके पीछे प्रतिमास ५ पौंड या लगभग ७५ रुपया खर्च करते हैं। ऐसा एक उदाहरण लेखकने स्वयं देखा है।

बीड़ीसे पाचन शक्ति घटती है, स्वादका अन्दाज नहीं लगता, भोजन फीका लगने लगता है और इसलिए उसमें मसाले आदि डालने पड़ते हैं। बीड़ी पीनेवालेके मुँह से दुर्गंध आती है, धुआँ हवा खराब करता है, कई बार उससे मुँह में छाले पड़ जाते हैं और मसूड़े और दाँतका रंग बदलकर काला या पीला हो जाता है। कभी-कभी कई लोगोंको दूसरे विशेष भयंकर रोग भी पकड़ लेते हैं। शराबका नशा खराब है, ऐसा माननेवाले लोग बीड़ीका नशा किस प्रकार करने लगते हैं, यह कुछ ऐसी बात है जो सहज ही समझमें नहीं आती। फिर भी जब हम देखते हैं कि बीड़ीका जहर सूक्ष्म होता है और इसलिए उससे होनेवाली हानिका पता नहीं चलता तो शीघ्र ही यह बात समझ में आ जाती है कि दारूसे घृणा करनेवाले लोग बीड़ी क्योंकर पीने लगते हैं। जो मनुष्य नीरोग रहना चाहता है, उसे बीड़ी अवश्य ही छोड़ देनी चाहिए।

शराब, तम्बाकू, भाँग आदि व्यसन हमारा शारीरिक स्वास्थ्य ही नष्ट नहीं करते, उनका मानसिक तथा आर्थिक स्थितिपर भी बुरा असर पड़ता है। हमारी नीतिमत्ताका नाश हो जाता है और हम अपने व्यसनके गुलाम बन जाते हैं।

परन्तु चाय, कॉफी और कोको सम्बन्धमें समझाना और यह सिद्ध करना कि ये चीजें भी खराब हैं, अत्यन्त कठिन कार्य है। फिर भी इतना तो मानना ही पड़ेगा कि ये पदार्थ दूषित हैं। इन वस्तुओंमें भी एक प्रकारका नशा होता है। चाय और कॉफीके साथ दूध और शक्करका मेल न हो, तो उसमें पौष्टिकता देनेवाला कोई